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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निपातार्थ-निर्णय २२७ बाह्यसत्तानिषेधात् । बुद्धौ सन्नपि घटो बहिर्नास्ति इत्यर्थात् । न च-"घट'-'अस्ति'-पदाभ्यां या 'घटविषया अस्ति बुद्धिः' जाता सा नया निवर्त्यते । किं बौद्धार्थस्वीकारेण" इति-वाच्यम् । बुद्ध : शब्दावाच्यत्वेन नत्रा तन्निषेधायोगात् । एतेन बौद्धार्थम् अस्वीकुर्वन्तो नअर्थबोधाय कष्टकल्पनां कुर्वन्त'स्तार्किकाः परास्ताः । इस प्रकार (नत्रर्थ-'अत्यन्ताभाव'- का 'विशेष्य' रूप से 'क्रिया' में अन्वय मानने पर) घट की 'सत्ता'-रूप अर्थ का, जो पहले ज्ञात हो चुका है, 'न' के द्वारा निवर्तन असम्भव होगा क्योंकि 'सत्' (विद्यमान) का निषेध नहीं होता और 'असत्' (वस्तु) के तो, (उसको) सत्ता के न होने से ही, निवारण के (स्वतः) सिद्ध होने के कारण ('न' के द्वारा) निषेध अनावश्यक है । जैसा कि कहा है : "विद्यमान वस्तुओं का निषेध (संभव नहीं है और अविद्यमान वस्तुओं में भी वह (निषेध) आवश्यक नहीं है। इस न्याय से संसार में (सर्वत्र) 'नन्' का अर्थ (प्रयोग) नष्ट हो गया।" यदि यह कहा जाय तो वह ठीक नहीं है क्योंकि "बुद्धि में विद्यमान शब्द ही वाचक है तथा बुद्धिगत अर्थ ही वाच्य है" यह (स्फोट प्रकरण में) कहा जा चुका है। (इसलिये) बुद्धि में विद्यमान अर्थ की भी बाह्य सत्ता का निषेध 'नन्' शब्द द्वारा किया जाता है, जिसका अर्थ यह है कि बुद्धि में विद्यमान घट भी बाहर नहीं है। यह नहीं कहा जा सकता कि- “घट' तथा 'अस्ति' शब्दों के द्वारा जो घट विषयक सत्ता का ज्ञान उत्पन्न हुआ उस ज्ञान का ही 'ना' के द्वारा निवारण किया जाता है इसलिये अर्थ को बुद्धिगत मानने की क्या आवश्यकता?" क्योंकि (घट की सत्ता-विषयक) ज्ञान शब्दों का वाच्य नहीं है । अतः' न' के द्वारा उस (ज्ञान) का निषेध (भी) सम्भव नहीं है । इस (कथन) से अर्थ को बुद्धिगत न मानने वाले तथा 'न' के अर्थज्ञान के लिये कष्ट-कल्पना करने वाले नैयायिक पराजित हुए। वैयाकरणों के उपर्युक्त सिद्धान्त के विषय में यहां एक और प्रश्न किया गया है कि "तिङत' पद का क्रियारूप अर्थ 'विशेषण' है तथा 'प्रसज्यप्रतिषेध' वाले 'नञ्' का 'अत्यन्ताभाव' रूप अर्थ 'विशेष्य है" इस सिद्धान्त का अर्थ यह है कि 'प्रभाव' को १. ह.--कुर्वम्तश्च । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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