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धात्वर्थ-निर्णय
१४१
सभी कारकों की अन्वयिता में रहने वाले (अन्वित होने वाले) धर्म (फलत्व तथा व्यापारत्व) से युक्त ('फल' तथा 'व्यापार') 'क्रिया' है । (इस विषय में)
"सिद्ध तथा प्रसिद्ध जितना भी साध्य रूप से अभिहित होता है उसे, क्रमरूपता का आश्रयण किये जाने के कारण, 'क्रिया' कहा जाता है।
"अप्रधान अवयवों से युक्त तथा कम से उत्पन्न होने वालों (व्यापारों) का, बुद्धि द्वारा अभिन्न रूप में प्रकल्पित, समूह ‘क्रिया' इस (नाम) से व्यवहृत होता है।
ये (कारिकायें), "भूवादयो धातवः” (पा० १.३.१.) सूत्रस्थ महाभाष्य के अभिप्राय का प्रतिपादन करने वाले, भर्तृहरि-विरचित (वाक्यपदीय) ग्रन्थ से (उद्ध त) हैं।
क्रम से उत्पन्न होने वाले (आग जलाना आदि अवान्तर) 'व्यापारों' के समूह के प्रति अप्रधानभूत अवयवों (अनेक अवान्तर 'व्यापारों') से युक्त तथा (उन सभी प्रावन्तर 'व्यापारों') का संकलन अथवा संयोजन करने वाली एकत्व बुद्धि के द्वारा अभिन्न रूप में प्रकल्पित समूह 'क्रिया' इस शब्द के द्वारा व्यवहृत होता है-यह द्वितीय कारिका का अर्थ है। यहां अवयवों (अवान्तर 'व्यापारों') के कारण पूर्वापरता (क्रमिक़ता) है तथा (उन 'व्यापारों' के अभिन्न) समूह के आश्रय से एकता है। एक क्षण में नष्ट हो जाने वाले 'व्यापारों' का समुदाय न बन सकने कारण 'बुद्धि के द्वारा (प्रकल्पित समूह)' यह कहा गया है। ___ 'पचति' (पकाता है), 'पक्ष्यति' (पकायेगा) इत्यादि में ('फल' तथा 'व्यापार') 'असिद्ध' हैं। 'अपाक्षीत्' (पकाया) इत्यादि में ('फल' और 'व्यापार') 'सिद्ध' हैं। (इस प्रकार) 'सिद्ध' या 'असिद्ध' ('फल' तथा 'व्यापार') साध्य रूप से कथित होता हुआ 'क्रिया' है। 'आश्रित-(क्रमरूपा)' इस (कथन) से ('क्रिया' शब्द की) यौगिकता का ज्ञापन किया गया है क्योंकि अवयवों की कम से ही उत्पत्ति होती है। इसलिये क्रम का आश्रयण करने वाली 'क्रिया' है-यह प्रथम कारिका का अर्थ है । ('क्रिया' के) एक एक अवयव में भी (उनके) समूहरूप का आरोप करने के कारण पात्र को चूल्हे पर रखने के सयय भी 'पचति' (पकाता है) यह व्यवहार होता है। इस (बात) को (भर्तृहरि ने) कहा है
"व्यापारों' के एक अवयव या समूह के (बोध के) लिये, सामान्यरूपता को प्राप्त हुई, 'पच्' आदि (धातुएँ) स्वाभाविक रूप से प्रवृत्त (प्रयुक्त) होती हैं।"
सर्वकारका...."क्रिया-नागेश ने 'क्रिया की जो यह परिभाषा दी है उसका अभिप्राय यह है कि 'क्रिया' वह है जिसमें सभी कारकों के साथ अन्वित हो सकनेसम्बद्ध हो सकने की क्षमता हो । यहां परिभाषा में 'कारक' के साथ 'सर्व' विशेषण लगाने का प्रयोजन यह सुस्पष्ट कर देना है कि सभी 'कारकों' का अन्वय 'क्रिया' में ही होता है। 'अधिकरण' कारक भी अपने आश्रय ('कर्ता' अथवा 'कर्म') के द्वारा 'क्रिया' से ही सम्बद होता है।
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