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दश-लकारादेशार्थ-निर्णय
२४३-२६२
'लकारों' के स्थान पर विहित 'आदेश'-भूत 'तिङ्' की अर्थवाचकता के विषय में विचार; 'लादेश'-मात्र के अर्थ तथा उनका परस्पर अन्वय; वर्तमान काल की परिभाषा; 'लिट्' के आदेशभूत 'तिङ्' का अर्थ; 'कृ', 'भू' आदि के अनुप्रयोग के स्थलों में 'कृ', 'भू' आदि धातुओं तथा 'आम्' प्रत्यय के अर्थ का निर्णय और उनके पारस्परिक अन्वय का स्पष्टीकरण; 'लुट्' के आदेशभूत 'तिङ' के अर्थ तथा 'भविष्यत्त्व' की परिभाषा के विषय में विचार; 'लुट'-स्थानीय तिङ्' का अर्थ; 'लेट्' लकार के आदेशभूत 'ति' का अर्थ; 'लोट' लकार के स्थान पर आने वाले 'तिङ्' का अर्थ; 'लङ्' के आदेशभूत 'ति' का अर्थ; 'लिङ् के आदेशभूत 'तिङ्' का अर्थ; 'प्रवर्तना' की परिभाषा; 'लुङ' लकार के आदेशभूत 'लिङ्' का अर्थ तथा 'भूतत्व' की परिभाषा; 'लुङ् लकार के आदेशभूत 'तिङ्' का अर्थ ।
लकारार्थ-निर्णय
२६३-३१४
लकारार्थ के विषय में विविध मत; 'लकार' को ही वाचक मानना युक्त है, उसके स्थान पर आने वाले 'तिप्' आदि 'आदेशों' को नहीं; 'लत्व' तथा 'पात्मनेपदत्व' रूप शक्तियों में अन्तर; कर्तृवाच्य के प्रयोगों में शाब्द बोध का स्वरूप; कर्मवाच्य तथा कर्तृवाच्य के कुछ और प्रयोग; काल की दृष्टि से 'लकारों' के विविध अर्थ; 'वर्तमान' आदि कालों का अन्वय 'कृति' (यत्न) अथवा 'व्यापार' में ही होता है; 'ज्ञा' आदि धातुओं के विषय में विचार; 'लट्' से किस प्रकार 'वर्तमान'काल तथा 'प्राश्रयता' दोनों का बोध होता है और 'वर्तमान' काल का क्या अभिप्राय है इन प्रश्नों का उत्तर; एक ही पद ('लट्') से बोधित 'कृति' तथा 'वर्तमानता' इन दोनों अर्थों में परस्पर अन्वय का प्रकार; 'घटो नश्यति' इत्यादि वाक्यों में 'लट्' के अर्थ के विषय में विचार; इस विषय में अन्य आचार्यों का मत; 'नश्यति' के अर्थ के विषय में कुछ अन्य विद्वानों का मत; 'पाख्यात' (लकार) से होने वाले अर्थ-बोध के विषय में वैयाकरणों, मीमांसाकों तथा नैयायिकों के विभिन्न वाद; 'लङ्' तथा 'लुङ् लकार के अर्थ के विषय में विचार; 'लिट' लकार के अर्थ-'भूत' काल तथा 'परोक्षता'-के विषय में विचार; 'लुट' तथा 'लुट् लकार से प्रकट होने वाले भविष्यत काल की परिभाषा; कुछ अन्य विद्वानों का मत; 'नश्' धातु के 'लुट' तथा लुट् लकार के प्रयोग के विषय में विचार; 'पक्ष्यति', 'पक्ववान्' इत्यादि प्रयोगों के अर्थ के विषय में विचार; 'लिङ्' तथा 'लोट् लकार के अर्थ के विषय में विचार; 'विधि' शब्द
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