________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
[लक्षणा के दो अन्य भेद-'प्रयोजनवती' तथा 'निरूढा']
प्रकारान्तरेण' पुनर् लक्षणा द्विविधा । तथाहिप्रयोजनवती निरूढा' च लक्षणा द्विविधा मता। इति । असति प्रयोजने शक्यसम्बन्धो निरूढ-लक्षणा । 'त्वचा ज्ञातम्' इत्यादौ यथा त्वचस् त्वगिन्द्रिये । इयं शक्त्यपरपर्यायवेति बोध्यम् । 'गंगायां घोषः' इत्यत्र तीरे गंगा-गत-शैत्य-पावनत्वादिप्रतीतिः प्रयोजनम् । 'गौर्वाहीकः' इत्यत्र सादृश्यं लक्ष्यतावच्छेदकम् । गवाभेद-प्रत्ययः प्रयोजनम् । 'कुन्ताः प्रविशन्ति' इति भोति-पलायमान-वाक्ये कुन्त-विशिष्ट-पुरुषे कुन्त-गत-तैक्षण य-प्रतीतिः प्रयोजनम् इत्याहुः ।
एक अन्य दृष्टि से लक्षणा पुनः दो तरह की है। जैसा कि (कहा गया है) "प्रयोजनवती' तथा 'निरूढ़ा' इस रूप में लक्षणा दो प्रकार की मानी गयी है। प्रयोजन के अभाव में वाच्यार्थ का सम्बन्ध 'निरूढा' लक्षणा है। जैसे 'त्वचा से जाना गया' इत्यादि (प्रयोगों) में 'त्वक्' (शब्द) की त्वगिन्द्रिय में (लक्षणा की जाती है) । परन्तु यह (निरूढ़ा लक्षणा) शक्ति (अभिधा) का ही दूसरा पर्याय है-यह जानना चाहिये।
'गंगाया घोषः' (गंगा में प्राभोरों की बस्ती) इस (लक्षणा के प्रयोग) में 'गंगा नदी में रहने वाली शीतलता तथा पवित्रता की तट में प्रतीति कराना' प्रयोजन है । (इसी प्रकार) 'गौर्वाहीकः' (वाहीक प्रदेश का वासी बैल है) इस (प्रयोग) में लक्ष्यता का आधार है सादृश्य । 'बैल से (वाहीक की) अभिन्नता बताना'- इस लक्षणा का प्रयोजन है । डर कर भागते हुए (लोगों) के 'कुन्ताः प्रविशन्ति' (भाले प्रविष्ट हो रहे हैं) इस वाक्य में 'भाले वाले पुरुषों में भाले की तीक्ष्णता का बोध कराना' प्रयोजन है। यह ( लक्षणा-विषयक प्रसंग नैयायिक) कहते हैं।
इयं शक्त्यपरपर्याया एव--नागेश का विचार है कि 'निरूढ़ा लक्षणा' में तथा 'अभिधा शक्ति' में वस्तुतः कोई अन्तर नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार कोई शब्द अपनी 'अभिधा शक्ति' से अनादि-तात्पर्यवश किसी अर्थ को कहता है, उसी प्रकार 'निरूढ़ा लक्षणा' १. काप्र शु०-प्रकारान्तरेण सा। २. निस०, काप्रशु०-रूढ़ा। ३. प्रकाशित संस्करणों में 'च' नहीं है।
For Private and Personal Use Only