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(भाषा) जिस के प्रति चरण में भगण तगण नगण तथा दो गुरु हों और पांचवें तथा अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो उसको कुठभलदन्ती छन्द कहते हैं । इस के प्रत्येक चरण के स्वरचिह- (Issiuss) ऐसे हैं ॥ ४५ ॥
वैश्वदेवी हस्थो वर्णवेत्सतमोऽथो नधान्त्यो,
वाणैरश्वैः स्यायत्र विश्रामयोगः । माभ्यांयाभ्यांसानिर्मितकैकपादा,
प्रोक्ता काव्यादौ वैश्वदेवी सुधीभिः॥४६॥ (अन्वयः) यत्र सप्तमः अथो नवान्न्यः वर्ण : हरवश्चेत् वाणैः अश्वैः विश्रामयोगः स्यात, माभ्यां याभ्यां निर्मितकैकपादा सा सुधीभिः काव्यादौ वैश्वदेवी प्रोक्ता ।
(टोका) यत्र= यस्यां प्रतिचरणं सप्तमः अायो अथच नवान्त्यः = शम: वर्ण: हस्वश्चत् तथा बाणैः पञ्चभिस्ततश्च प्रश्वः सप्तमिणविश्रामयोग:- पतिसम्बन्ध: स्यात् , मगण मगण वगण-यगणैनिर्मित एकैकः पादो यस्यास्तथाभूता सा काव्यादौ सुधीभिश्वदेवी प्रोतासथिता । अत्र प्रतिवरणम (ssssssississ) इत्येष स्वरवर्णन्यासनियमः ।। (प्रति०) व्याख्याताः सर्वे ॥
(भाषा) जिस के एक एक चरण में सातवा और दसवें अक्षर लघु हो एवं पांचवें तथा अन्तिम अक्षर पर विश्राम के
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