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( ३८ )
श्रीगोमी पारस सुर स्वामी, विश्व पालक जग घट जामीजी । नित तेजकवि यशगावे ॥ आबू• ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ || देशी लूरमें ||
सहस्रकूटजी का दरशन करवा, सिद्धाचल गिरि जावा एलो । जाव धरीने प्रजुपद फरसां, मनचिंत्या फल पावलो ॥ सहस्र० ॥ १ ॥ पांचजरत ओर पांच ऐरवत, दश क्षेत्र विरदावां एलो ॥ व्यतित अनागत वर्त्तमानसों, ती सो गुणगुणावा एलो ! सदस्र०॥२॥ महा विदेयके अहो तर विजयमे, एकसोसाठ पुरावाएलो । चोवीसे जिनवरका कल्याणक, वीसोतरवरतावाएलो ॥ सहस्र• ॥३॥ पांचमदा विदेहे मे वीसा, विहरमानवतावालो | चारशाश्वता सबकोय जाने, विधिसुं पूजन करावाएलो || सहस्र० ||४|| एक सहस्र चोवीस बिंब छाजे, चरनफरस चितचावाएलो । को वर ने श्रीमुखकी शोजा, इणसम गुणमें जतावांए लो || सहस्र• ॥५॥ केशरने कस्तूरी चरचा, रतनाकी अंगियां रचावांदेलो। कनकथालभारती उतारी, परदक्षणा फलल्यावएलो || सहस्र० ||६|| आठपह र अरु घड़ी पलपलमें, दिरदे श्री जिनवर घ्यावां
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