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( ३७ )
काम चित्त चायो ॥ आदिश्वर अरिहंत विराजे, कर दर्शन तन मन हरषायां ॥ सिद्धा० ॥१॥ चोवीसी जिनराज मंदिर मे, लागत ठाठ सवायो ॥ इंद्रादिक सुर या फरसवा, तीरथ मोटो महात्म्य वधायो॥ सिद्धा० ||२|| नवा प्रकार की पूजा उत्सव, आज सुहायो ॥
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विजन जावत प्रेम जावना, मेघ मलार कर वरसन थायो | सिद्धा० ॥ ३ ॥ श्री गोकी पारस प्रभुजी को परतक्ष परचो पायो || जयो अधिक आनंद मुलक में सेवक तेजकवि यश गायो | सिद्धा० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
|| देशी वणजाराकी ॥
मिलन विजन जाव वधावे, याबूगिरि चल सुहावे । गिरि बूकी छबी जारी, माने ओरन लागत प्यारीजी। फरस्यासुं पातिक जावे ॥ श्राबू || १ || याबुकी अजब कहानी, सब जानत केवलज्ञानी जी। जिनकी जो नजर में आवे || आबू० ॥ २ ॥ कोई गावत प्रत्यक्ष बाने, प्रभु गत घट घट की जाने जी । महिमा नहि वरणी जावे शुजपूजन उत्सव कीनो, कर जक्ति नोजी । परजवफल निश्चय पावे ॥ आबु० ॥ ४ ॥
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बू ० ॥ ३ ॥ अमृत रसपी