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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) पारस गोडी पुकार | वाइमहोत्सव ज्ञानकी नक्ति, हो रही जय जयकारे || जेटनरे० ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ || देशी डंके ॥ हां सदा नवपद उर ध्यावो, मिलकर प्रेम भावना जावो । अष्टमहोत्सव जक्ति ज्ञानकी, कर फल पावोरे ॥ सदा० ॥ १ ॥ तर सुगंध अमोल लगाई, अंग पाल प्रवल अधिकाई । केशर मृगमद चरच वरख से अंगी रचावोरे ॥ सदा० ॥ २ ॥ धूप धोर से मगन करीजे, धर्म काम में चित्त नित दीजे । लीजे तनमन लगा, प्रभु दरशन को लावोरे ॥ सदा० ॥ ३ ॥ समोसरण में प्रभु विराजे, शिरपर छत्र छटां हद छाजे । जविजन सकल समाज जुक्ति कर, धरम बधावोरे ॥ सदा० ॥ ४ ॥ याज दुतिय पूजन दिन नीको, श्री गोमी पारस प्रभुजीको । तेज कवि कहे हृदय अटल यांनद सजावोरे || सदा० ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ । || देशी सिद्धाचल गिरि परम सुहायो || सिद्धाचल गिरि परम सुहायो ॥ सिद्धा०॥ सकल For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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