SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५ ) वंछित फलदायक वर लायक । सुरनामकसुखकारी॥ कु०॥२॥ नला ५ नूपति थाहमचतहे । हय गय जीडहजारी। गणारावसेठसेनापति । आवतहे अशवारी। कु० ॥३॥ नेरी संखमधुरधुनिबाजे। सुरनाईसुरसा।। गावतहेकेई मधुर २ धुनि। सानु गगनमकारी॥ कु० ॥४॥ गच्छनायक जिनचंद्रपटोधर। खरतरगच्छअवतारी। पद्मसृरिया अरजी करतहे । कुशल २ सुखकारी ॥ कुशल. ॥५॥ति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ देशी ढाल कोयलडी॥ लेटनरे हो चालो सिद्धाचल गिरिनार, जाव त जनवर-छार, तेरा पटत पाप अपार रे॥टनरे। ॥१॥ तन मन से जिनवर पद परसे, नाम जपे नवकार । पूजन कर पर नव को लाहो, लीजिये वारं वाररे ॥ नेटनरे॥२॥ प्रत्यक्ष परचा श्री आदिजिनेश्वर, नेमप्रन्नु जरधार। पावत मोद अमरपद प्राणी, आवागमन निवार ॥ नेटनरे ॥३॥ दिन दिन अधिको कर उत्सव,उत्तम धर्म विचार । सांज समे नित नावना जावो, कर प्रनु चरनो सुं प्यार ॥ लेट नरेण ॥ ४ ॥ सेवक तेजकवि की सुणजो, श्री For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy