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( ३४ )
गुरु २ सब जगत पुकारे राखेकुछ नही जान ॥ उत्तमगुरु जिनसिद्धसूरिंदके कुशल कुशल पढ़े चान ॥ ० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ राग कब्बाली ताल केरवा ॥
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करुं गुरु अर्ज तुमसेती जरासुणले तो क्या होगा | तुम्हारुं वीर्द सुंणीने प्रयोतुमतीर गुरु राजन । मुके ना तुम बिन आधार खोरे जटकुंतो क्या होगा । मेरे अवगुण निहारोना जो हो अवगुण क्षमा कीजे । हवे इक सी तुमहेरा वर्ष रखलें तो क्या होगा | कहे करजोड करो परशन यहि गुरु अर्ज तुमसेती । रहु तुम ध्यान निशद मां जर लक्ष लेतो क्या होगा | इति पदं संपूर्णम् || ॥ चाल अशवारी की ताल दीपचंदी ॥
कुशल गुरु निरखणदा यशवारी | तेरी अद्भुत कांति पारी || कु० || तोरी चरणकमलबलिहारी ॥ कुशलगुरु निरखणदोछिब जारी || कु० ॥ चोवा २ चंदन और अरगजा । मृगमदमहेक पारी ॥ धौरगुलाबकेतकी । चंपक फूल रही गुलक्यारो || कु०॥ १ ॥ देव जुवनको इन्द्रभुवन हे | किल मिलज्योति अपार ||
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