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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) कपूर मिलाके अम्बर फिर घसणा चहिये ॥ निज शुद्ध जावसे गुरुका चरण कमल पूजना चहिये ॥ २ ॥ जाई तुरी मचकुंदमालती चंपकली मोतीया चहिये | वो दमनाकेतकी चंबेल इस्क पेच जोगीया चहिये || ३ | मोल गुलाब सेवती जुई कदंबांबमाजर चहिये || फूल हंस हजारा मनोहर चरणोपर धरणा चहिये ॥ ४ ॥ शाहन्शाह सुलतान दिल्लीपका प्रति बोधक येदि कहिये || जिन सिद्ध सूरिक परम गुरु मणिधारी रटया चहिये ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ || देशी पियापर घरमतजा ॥ ॥ ताल केरवा ॥ निपट मन धरसतगुरु को ध्यान ॥ नि० ॥ वृथा जनममतहार || नि० || हां सतगुरुके चरणशरण थी पावे पूरण ग्यान ॥ उत्तमजन रु साधु संगतथी वधे चोगुणोमान ॥ नि० ॥ १ ॥ सुरपती खग पति और एनरपनि धरेगुरु शिरांण ॥ मुढ प्रजान जो याको जुले थावे बहु देरा || नि० || २ || दीन दयाल दया निधी स्वामी आपे छितदान ॥ कुशल कुशलए समरण हरदम हृदयकमल विच धाए ॥ नि० ॥ ३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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