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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) वाद मतके गुरु ग्यानी । वानी अमृत समाना, ॥ मे० ॥ १ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मकेघरमे । अनंताई कालबसाना || मे० ॥ २ ॥ दोषवारा रहितजो देवा । परति हमकोबताना || मे० ॥३॥ जिनेंजवानी जब श्रवने नीसुनी । साचकुंठ हमजाना ॥ मे ॥ ५ ॥ अबमे चेत गयो कुगुरुसे | सतगुरु I बेन लगवाना || मे० ॥ ५ ॥ एसे गुरुकी में वारी २ जाउं - रामदाशयशगाना || मे० ॥ ६ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ For Private and Personal Use Only - ॥ राग धनाश्री त्रिताल ॥ सत्त गुरु मेरे मन जाया । देखोरीमाई स० । चरण पाकात सोवे । सेवतसुरनरराया ॥ दे० ॥ १ ॥ चंद्र सूरि पट धरसेवत । सूर जविजन के मन जाया || दे० ॥ २ ॥ परचा पूरण एसे सदगुरु । पुन्य उदयसे पाया || दे० ॥ ३ ॥ दासरामकरे विनतीनित | यश सदगुरुका गाया | दे० ॥ ४ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ||लावणी लंबी रंगतकी ताल केरवा ॥ दादा साहेब जिनचंद्रसूरिंदका दरशण नित्य करणा चहिये ॥ खूब ध्यान लगाके. अर्ज निजःकारजकी करणा चहिये ॥ १ ॥ मृग मद केशर
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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