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(२५) अब मोरी लजरे ॥ दुःख ॥३॥ रामने तारो अरजी धारो में प्रनुजी तुम पय रजरे ॥ फुःख. ॥४॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ देशी-हरिने कुटीया बळ रामायण
ताल केरवा ॥ विरथा जनम हंसा काएकोरे खोई ॥ वि० ॥ विरथा जनम हंसा काएकुं खोई॥ संग चले ना कोई
आखिर विरीयां चलेगोरे पाप पुण्य हंसा साथेरे दोई ॥ वि० ॥१॥ मात तात अरु व्रात तुम्हारे सगे सम्बन्धी सोई ॥ उन विरियां कोई श्रामोन आवे जिनजीरो धर्मरे हंसा संगहोई ॥ वि० ॥ ५॥ सगे सम्बंधीन्यातीगोती अपने स्वारथ रोई॥तेरे स्वारथ कोना रोवरे स्वारथकी थाप्रीतसगाई॥ वि०॥३॥ हंसा अज्ञानी तोउना चेते वार कह्यो जोई॥कारी कंबर उजरी न होवेरे वार शपथरपे धोई॥ वि० ॥४॥ कर्मवसे चिढंगतीमें भटके शुद्ध श्रद्धा न होई ॥ यतिराम-अब सो हेरी देवनिरंजन मेनेरे जोई ॥ वि० ॥ ५ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
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