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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) जल बिन मरत माछली सो गत होई हमारी॥क्यों. ॥४॥जर जेवर पोशाक त्याग दिये मन वैराग्य धारी॥क्यों० ॥५॥ पहिन चंदली चीर चनोहे बन जोगन मतवारी॥क्यों ॥६॥ शिवचंद कहे उन एक न मानी जाय चढी गिरनारी ॥ क्यों० ॥ ७॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥रागमाम ताल दादरा ॥ __ नाथमेरी तुम से ल लगी वामासुत महाराज आज मेरी तुमसे ले लगी॥पहिलेतो अझान रह्यो मेरी कमता बुद्धि उगी। फिर सतगुरु ने शान बतायो किसमत आन जगी॥ नाथ० ॥१॥ पन्ना वरण सहस्रफण शिरपर देखत विपदानगी। शिवचंदकहे माझदो पद । जृमतामोरीतगी ॥ नाथ ॥२॥ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥राग-कल्याण तात ३॥ पुःख हरण सुखदेन ए सुरतरु श्रादिजिणंदको जिया नजरे ॥ पुःख० ॥ तिव्र करमसे निपट कपट तेरे अबतुं अंतर कपट तजरे ॥ःख० ॥१॥ पुन्य जोगसेतुं प्रनुपायो दरश तरस तुं कर अजरे ॥ फुःख० ॥२॥ तुं देवा में करूं तोरी सेवा तुम हाथे For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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