SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) ॥ कब्बाली तालधमाल ॥ अगरहम वेतमा होतेतो चेतनको खड़ा करते। क दम सुच तीर काबिल केऊपटगहे वीच दिलधरते २ ॥ तिला खुरबान करडारुं कदमके नुरपरसुखसे ॥ नखाकी रोशनी यसी तुली खुरसेददेरुखसे २ ॥ जब पास जाखुदके करत जो बन्दगी हररोज । तिनो के जानपरवारुं सकल जरजान अपनाखोय २ ॥ अजमेर| कबुल ए दिल परम विश्वासजग मिलजे । उरुको जवोदधिविचसे, रहेजोदाशजरमध्वकी, २ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ मालकोष दोहा, ताल त्रिताल ॥ मयाकर मेरे पर वर्द्धमान तेरानामलेती हे सारी जहान ॥ म ० ॥ १ ॥ जसतेरादुनियामे मशहुर हे द्वारा दोष से तुही दुरदे || म० ॥ २ ॥ वलमेहे आदम आखिरमे तुहीं निरंजननिराकारसबतुंही तुंही ॥ ० ॥ ३ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ || जंगलो ताल केरवो ॥ बाबा पार्श्वनकेतनपर सोहे श्रीङ्गीया । अंगियाही राकी करवाई मुखमल कपापे जम् For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy