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( १६ )
॥ कब्बाली तालधमाल ॥
अगरहम वेतमा होतेतो चेतनको खड़ा करते। क दम सुच तीर काबिल केऊपटगहे वीच दिलधरते २ ॥ तिला खुरबान करडारुं कदमके नुरपरसुखसे ॥ नखाकी रोशनी यसी तुली खुरसेददेरुखसे २ ॥
जब पास जाखुदके करत जो बन्दगी हररोज । तिनो के जानपरवारुं सकल जरजान अपनाखोय २ ॥ अजमेर| कबुल ए दिल परम विश्वासजग मिलजे । उरुको जवोदधिविचसे, रहेजोदाशजरमध्वकी, २ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ मालकोष दोहा, ताल त्रिताल ॥ मयाकर मेरे पर वर्द्धमान तेरानामलेती हे सारी जहान ॥ म ० ॥ १ ॥ जसतेरादुनियामे मशहुर हे द्वारा दोष से तुही दुरदे || म० ॥ २ ॥ वलमेहे आदम आखिरमे तुहीं निरंजननिराकारसबतुंही तुंही ॥ ० ॥ ३ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ || जंगलो ताल केरवो ॥ बाबा पार्श्वनकेतनपर सोहे श्रीङ्गीया । अंगियाही राकी करवाई मुखमल कपापे जम्
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