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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) चावै। क्योंगाशाजोगनका रूपलिया धार शिरकी स. बीलटी लोचकर माली । कप पहनेसंदली वहांसेचलीसती मतवाली । मुखपत्ती कोलीहाथ बगलमे ओघा उमरवाली । रस्तेमे वारीस हुई नींजती गिरनारीको चाली ॥ कुल ॥ सबसखि विछुझगड़वांहीमे गिरनारीपर आई। फिरगईगुफाके मांही तनसे उतारकर चीर। निचोझे नीर, खमी सुकलावे ॥ क्यों ॥३॥ वो उसीगुफाके वीच खमातोरहनेमा ध्यान लगाये। राजुलपेनहीथा चीरदेखकर रहनेमी ललचाये॥उनदीया काउसग्ग छोड़काम रिपु उनको आनसताये। वोपटुतापास फेरराजुलयह वचनसुनाये ॥कुल ॥द. स्ति कीतजअसवारीक्यो खरकीआपविचारी । तुं बोडमुक्तिसीनारी खलके खावे अग्यान पाय पकवान नही सरमावे ॥क्यों॥॥ फिर रहनेमी युं कहे सुनोसतवंती वचनहमरा । ये मिगता शीलपहास ग्यान खंबेका दीया सहारा । में नवसागर के वीचड़बता राजुल मुकेनिकला । तेरीमहिमा कहियनजाय सती तें जादवकुलको ताराकुल॥फिरयेही मता उपाया दोनोवहांसे उपध्याया। फिरनेमनाथ पा आया हाँसिल मुरादहोगई दिदादोउलई प्रजुगुण गावे ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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