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________________ ( ७२ ) - - जिनराय । सुरनरवंदितजिननये जगउपगारकरा य ॥ २ ॥ राग ॥ कीनेदेख्याहमेरास्वामी स्वामी जीशंतरजामीरे कीने०॥ एदेशी ॥कीनेदेख्याप्रन्नु शिवगामी शिवगामीअनिरामीरे की० टेक ॥ ढंढ तन्नय हेरानी तोनमिल्याविसरामीरे की० ॥१॥ मंतोसुन्याप्रभुभयेशरूपी अद्य शिव पदपामीरे। की० ॥ २ ॥ तंजीवनावस्वन्नावलयोप्रभु शतमगु णशनिरामीरे की० ॥३॥ तंजीलोकिकलोकोत्तर नयेप्रभु अरूपीअवेदीअकामीरे की० ॥४॥ अष्ट बेदीऔरअष्टउपाजे जोतिमईजगस्वामीरेकी०॥५॥ सुमेरुकजिनकृतरुषिकेलि श्रीअशस्तदस्वामीरेकी० ॥६॥ नियमकुटिलवर्द्धमानजिन अमृतेंदुशिवपा मीरे की० ॥७॥ सखानंदकल्याणवतहरि बाहुन्ना र्गवस्वामीरे की० ॥८॥ सन्नद्रपतिप्राप्तवियोषित श्रीब्रह्मचारीअकामीरे की० ॥ ९ ॥ असंख्यागति चारित्रेसजिन परिणामितमनोहारीरे की०॥१०॥ कंबोजविधिनाथकौसिक धर्मशउपगारीरे कीने० ॥ ११ ॥ इतित्री समाप्ता ॥ ॥ जलचंदनपुष्पधूपनै रथदीपातकैर्निवेद्यवस्त्रैः ॥ उपचारवरैर्वयंजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे १॥ अथ ओबीसमी पूजा लिख्यते ॥दोहा॥ विसवि षयेपंचना तजीभजोनगवान एक एक विषयेथकी लइयेदुःखअजान ॥ १॥धातकीपश्चिमऐरवत वंदूं जिनवर्तमान क्रोधलोनमायातजी औरतजीअभि
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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