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षोडशोऽधिकारः
श्रीमते विश्वनाथाय केवलज्ञानभानवे । अज्ञानध्वान्तहन्त्रेऽत्र नमो विश्वप्रकाशिने ॥१॥ अथासौ गौतमस्वामी प्रणम्य शिरसा मुदा । हितं जगत्सतामिच्छन् स्वस्य श्रीतीर्थनायकम् ॥२॥ अज्ञानोच्छित्तये ज्ञानप्राप्स्यै सर्वज्ञगोचराम् । प्रश्नमालामिमामपाक्षीदविश्वाङ्गिहितां पराम् ॥३॥ देवादेर्जीवतत्त्वस्य लक्षणं कीदृशं भुवि । कावस्था च कियन्तो हि गुणा भेदा द्विधात्मकाः ॥४॥ के पर्यायाः कियन्तो वा सिद्धसंसारिगोचराः । अजीवस्यापि तत्वस्य के प्रकारा गणादयः ।।५।। शेषास्रवादितत्त्वानां के दोषगुणकारणाः । कस्य तत्वस्य कः कर्त्ता किं फलं लक्षणं च किम् ॥६॥ केन तत्त्वेन किं वात्र साध्यते कार्यमञ्जसा । कीदृशैश्च दुराचारैर्नरकं यान्ति पापिनः ॥७॥ केन दुष्कर्मणा मूढास्तिर्यग्योनि च दुष्कराम् । कीदृशैश्च सदाचारैः स्वर्ग गच्छन्ति धर्मिणः ॥४॥ शुभेन कर्मणा केन नृगति श्रीसुखाश्रिताम् । केन दानेन वा यान्ति भोगभूमि शुभाशयाः ॥९॥ केन चाचरणेनात्र स्त्रीलिङ्गं जायते नृणाम् । पंवेदः पुण्यनारीणां कीबत्वं वा दुरात्मनाम् ॥१०॥ पङ्गवो बधिराश्चान्धा मूका विकलमूर्तयः । केन पापेन जायन्ते प्राणिनो व्यसनाकुलाः ॥११॥ रोगिणो रोगहीनाश्च रूपिणोऽतिकुरूपिणः । सुभगा दुर्भगाः केन विधिनात्र भवन्ति च ॥१२॥ सुधियो दुर्धियो मूर्खा नरा विद्वांस एव च । शुमाशयाश्च दुश्चित्रा भवेयुः केन कर्मणा ॥१३॥ धर्मिणः पापिनो भोगभागिनो भोगवर्जिताः । धनिनो निर्धनाः स्युश्च कीदशाचरणोत्करैः ॥१४॥
विश्वके नाथ, अज्ञानान्धकारके विनाशक और जगत्के प्रकाशक ऐसे केवलज्ञानरूप सूर्य श्रीवर्धमानस्वामीके लिए नमस्कार है ।।१।।
- अथानन्तर उन गौतमस्वामीने तीर्थनायक श्री महावीरप्रभुको हर्षके साथ सिरसे प्रणाम करके अपने और जगत्के सन्तजनोंके हितार्थ अज्ञानके विनाश और ज्ञानकी प्राप्तिके लिए समस्त प्राणियोंका हित करनेवाली यह सर्वज्ञ-गम्य उत्तम प्रश्नावली पूछी ॥२-३।। हे देव, सात तत्त्वोंमें जो संसारमें जीवतत्त्व है उसका कैसा लक्षण है, कैसी अवस्था है, कितने गुण हैं, उनके विभागात्मक कितने भेद हैं, कितनी पर्याय हैं, सिद्ध और संसारीविषयक उसके कितने भेद हैं ? इसी प्रकार अजीवतत्त्वके भी कितने भेद, गुण और पर्याय आदि हैं ।।४-५।। तथा आस्रवादि शेष तत्त्वोंके दोष और गुणोंके कारण कौन हैं ? किस तत्त्वका कौन कर्ता है, उसका क्या लक्षण है, क्या फल है और किस तत्त्वके द्वारा इस संसार में निश्चयसे क्या कार्य सिद्ध किया जाता है ? किस प्रकारके दुराचारोंसे पापी लोग नरकमें जाते हैं. किस दष्कर्मसे मढ लोग दःखकारी तिर्यग्योनिको जाते हैं. और किस प्रकारके सदाचरणोंसे धर्मीजन स्वर्ग जाते हैं ॥६-८।। किस शुभकर्मसे जीव लक्ष्मी और सुखसे सम्पन्न मनुष्यगतिको जाते हैं और किस दानसे उत्तम भाववाले जीव भोगभूमिको जाते हैं ।।९।। किस प्रकारके आचरणसे इस संसार में मनुष्योंके पुरुषवेद, पुण्यशीला नारियोंके स्त्रीवेद
और पापाचारी दुरात्माओंके नपुंसक वेद होता है ।।१०।। किस पापसे प्राणी लँगड़े, बहरे, अन्धे, गँगे, विकलाङ्ग और अनेक प्रकारके दुःखोंसे पीड़ित होते हैं ॥११॥ किस प्रकारके कर्म करनेसे जीव यहाँ पर रोगी-निरोगी, सुरूपी-कुरूपी, सौभाग्यवान और दुर्भागी होते हैं ।।१२।। किस कर्मसे मनुष्य सुबुद्धि-कुबुद्धि, विद्वान्-मूर्ख, शुभाशय और दुराशयवाले होते हैं ॥१३॥ किस प्रकारके आचरण करनेसे मनुष्य धर्मात्मा-पापात्मा, भोगशाली-भोगविहीन, धनी और
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