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घिद्यांकुर
पर ज़रा सोचना चाहिये उस मालिक पैदा करने वाले की हिक्मत को कि किस तरह जहां जिस चीज़ की ज़रूरत थो पैदा करदी है। गर्म मुलकों को रसोले फल दिये जिन से प्यास बुझे जेसे नोव नारंगो चकोतरा तरबज़ ऊख पांडा नारियल कसेरू वग़रः पहनने के लिये रेशम और रूई और चढ़ने के लिये ऊंट कि जिस को रेगिस्तान में गर्मियों के दर्मियान भी जल्दी बलकि कई दिन तक प्यास हो नहीं लगती है। सच है सर्द से गर्म मुलकों के आदमी कम मिहनतो और आसकती होते हैं। लेकिन वहां थोड़ी ही मिहनत से खाने पहनने और ज़िन्दगी को ज़रूरी इतियाजें दूर करने के सब सामान मिल नाते हैं ॥
सर्द मुलकों में न अनाज बहुत पैदा होता है न फल अच्छा फलता है। इस लिये वहां वालों को शिकार दिया है। और शिकार भी कैसा कि उस का वाल और चमड़ा उन लोगों को सर्दी से बचाता है। और पोस्तीन समर संजाब काकुम वगेरः नामों से जो यहां तक पहुंच जाता है बड़े दामों को बिकता है।
लेपलैंड वगैरः सर्द मुलकों में जो सब से बढ़ कर उत्तर ध्रुव से करीब है सर्दी और बर्फ के मारे खेती वारी जंगल तो क्या घास भी मुशकिल से पैदा होती है। लेकिन वहां वालों को उस ने एक तरह के बारहसिंगे ऐसे दिये हैं कि दूध उन का पोते हैं मांस उन का खाते हैं और खाल उन को ओढ़ने बिछाने और पहनने के काम में आती है । सींग के उन के बरतन बनाते हैं। और सवारी के लिये उन्हें गाड़ी में जातते है। यह गाड़ी बर्फ पर निहायत जल्द यहां तक कि बीस घंटे में सो कोस तक चली जाती है। लेकिन उस में पहिये नहीं लगाते नहीं तो बर्फ में घस जावें वह नाव के डोल पर बनती है।
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