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पहिला हिस्सा
और उन पर सूरज की किरणे सोधी पड़ा करती हैं उन में सदा गर्मी बहुत ज़ियादा बनी रहती है। और जिन पर सामने न रहने से सरज की किरणें तिरछी पड़ती हैं उन में सदा सर्दी बहुत ज़ियादा रहा करती है । जो इन गर्म और सर्द हिस्सों के बीच में पड़े हैं। वह मुड़तदल यानी साधारन हैं। न वहां गर्मी बहुत लगती है । न सर्दी दुख देती है। विषुवत रेखा यानी भ मध्य रेखा से जो जमीन के बीच में है साढ़े तेईस तेईस दर्जे उत्तर और दक्वन गर्म मुलक हैं । फिर तेंतालीस तेंतालीस दर्जे मतदल और साढ़े तेईस तेईस दर्ज उत्तर और दक्वन ध्रुव तक सर्द मुलक हैं ॥ मुतदल में भी जितना गर्म की तरफ़ हटा होगा कुछ किसी कदर वहां गर्मी का असर ज़ियादा रहेगा । और जितना सर्द की तरफ झुका होगा सर्दी का असर ज़ियादा मिलेगा।
उत्तर ध्रुव
साधारन
२३॥ ---
मधाररखा
TA
साभारन
सद
ববিয গ্রন্থ
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