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पहिला हिस्सा
सहक डाक घर थाने तार रेल सराय मुसाफिरखाने रहते हैं। पही अच्छे देस हैं। उन्हीं में सब तरह के रोज़गार की तरक्की और सारे पेशे वाले निडर सुख चेन से गुज़रान करते हैं। और यह तभी होता है। कि जब राजा अपनी नियत दुरुस्त रखता है । सब के जान माल को पूरी हिफाज़त करता है। और उस के डर से कभी कोई ज़बर्दस्त किसी ग़रीब को नहीं सताता है। वहां दर दर से व्यापारी बेखटके देस देस का माल लाते हैं। और उस राजा को बड़ाई और नेकनामी चारों खंट पृथ्वी में फैलाते हैं ।
फ़ोज अच्छे राजा इसी लिये रखते हैं कि जो कभी कोई दुश्मन' ग़नीम बाहर से चढ़ आवे तो अपनी प्रजा यानी रअय्यत को उस को लट मार से बचा सके। या अपने ही देस में अगर बदमाश इकट्ठे होकर कुछ फ़साद उठाना चाहें उन को बख़बीसज़ा देसकें।
ना देस समुद्र के कनारे बसे हैं उनके बचाव के लिये जंगी जहाज़ रखने पड़ते हैं। उन पर किलओं की तरह तो चढ़ी रहती हैं और वह किलों की तरह लड़ते हैं। और फिर किलए भी कैसे कि जिन पर मनों वज़न गोले की तोप पलटन की पल्टन सिपाहियों को धुएं की कल के बल से हवा की तरह उड़ते अंगुलों मोटे लोहे के पत्तर उन पर जड़े और तमाशा यह कि पतवार से जिधर को चाहो एक दम में मोड़ लो । बहुत से अब ऐसे बने हैं कि पानी के ऊपर थोड़े, ही दिखलाई देते हैं उन में बैठ कर दुश्मन को मार से बचे हुए पानी के अन्दर ही अन्दर चाहे जहां चले जाओ ॥ हथियार ढाल तलवार छुरी कटारो भाले बरछे खुखड़ो बान तीर कमान तवर चक्कर जिरह बक्तर बहुत किसम के होते हैं। लेकिन ताप बंदक पिस्तोल को हर्गिज़ नहीं पाते हैं । लड़ना बहुत बुरा
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