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विद्यांकुर
खाने के बाद ज़रा आराम भी करले। आराम से यह मतलब नहीं है कि दुपट्टा तान कर सोरहे और भैस की तरह नाक बुलावे । बल्कि कोई मिह्नत यानी सोच विचार और दौड़ धूप का कुछ काम न करे । लेटकर किताब या अखबार देखे चाहे और किसी तरह अपना जी बहलावे ॥ जी बहलाने के लिये सुबह शाम लोग हवा खाने को बाहर जा सकते हैं। अपने दोस्त आशनाओं के साथ जब पास हो अकल और काम की बातें भी कर सकते हैं। लेकिन जा हर्गिज़ न खेलें। और मखों की तरह बेजा बेफाइदा बुरे कामों में अपना अनमोल वकत खराब न करें। बीमारी तमी दर रहेगी कि जब अपना बदन और मकान ख़ब साफ़ रक्खोगे। अगर तुम्हारे मकान अंधेरे या ऐसे हैं कि जिन में ताज़ी हवा हर दम आ जा नहीं सकती या जमीन हमेशा सोलो और नम रहती है ज़रूर बीमार पड़ोगे। आदमी जब बीमार हो उमी दम अच्छे से अच्छे बेद हकीम डाकर की जा मिल्ने दवा करनी चाहिये । इस में गफलत और सुस्ती कमी न करनी चाहिये। हम जानते है कि इस देस में बड़े होकर या बीमारी में दवा न पाकर अपनी मौत से तो एक ही दो मरते होंगे । लेकिन मकान हवादार न होने से या उस में या उस के आस पास मेला कुचेला सड़ा गला बदबू ग़लीज़ कूड़ा कर्कट पड़ा रहने से या जो चीज़ खाने लाइक नहीं खा जाने से या उलटो दवा काम में लाने से दस बीस उठ जाते होंगे।
अच्छे देस जहां बड़े बड़े शहरों में अच्छे अच्छे बाज़ार ढकान मंदिर शिवालय मनिद गिरजा कचहरी ख़ज़ाने मदासे शिफाखाने होते हैं। जहां नाबाद गांव कसबे में सुधरे मुथरे कुग तालाब नहीं
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