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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी जो अद्वैत नित्यकर्म भी नहीं सह सकता, वही निषिद्ध भी निगलनेको तैयार होता है। वैदिक शब्द सूक्षम अर्थके हैं। उनसे, आगे चलकर, लौकिक अर्थ निकले। सूक्ष्ममेंसे स्थूल, अव्यक्तमेंसे व्यक्त, यह सृष्टिनियम है। _ कृष्ण अपने-आपको साधारण ग्वालासरीखा मानता था। इतनाही नहीं, लोग भी उसे वैसा ही मानते थे और मानते हैं। इस दूसरी बातमें कृष्णके अमानित्वकी विशिष्टता है। देह-बुद्धि छोड़ ! न्यापन-बुद्धि छोड़ ! रचना-बुद्धि छोड़ ! खेतके ऊपर-ऊपरकी फसल किसानकी, परन्तु जमीनके भीतरके धनपर सत्ता सबकी। उसी तरह सामान्य विचारोंपर उनकी मातृभूमिकी सत्ता, लेकिन असामान्य विचारोंपर सारे जगतका स्वामित्व । ६७० जगतमें दो महिमाएं काम कर रही हैं : (१) सत्य-महिमा और (२) नाम-महिमा । .६७१ संसारमें नीति और भक्तिकी सत्ता रहे, यह धर्मका उद्देश्य है। ६७२ वेद-प्रामाण्य याने पूर्व-परंपराके लिए कृतज्ञता-बुद्धि और नवीन पराक्रमके लिए स्फूर्तिदायक स्वतन्त्रता। ६७३ काला कंबल मुझे प्रिय है। काले कंबलका सहवास याने श्रीकृष्णका सहवास । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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