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विचारपोथी
आत्म-दर्शन मोक्षका आस्वाद लेना है । परमात्म-दर्शन मोक्षका पेट-भर भोजन करना है। पहली बातका अनुभव इसी देहमें हो सकता है, दूसरीका देहपातके अनन्तर ।
१२४ __हे गोपाल कृष्ण, मेरा अहंकार कालिया है। उसका सिर तू जब कुचलेगा तभी मुझे कालिया-मर्दनकी कथामें विश्वास होगा।
१२५
संसार के तीन लिंग : अहंकार पुल्लिग, प्रासक्ति स्त्रीलिंग, असत्य नपुंसकलिंग ।
डूबनेवालेसे सहानुभूतिके माने उसके साथ डूबना नहीं है ; बल्कि खुद तैरकर उसको बचानेका प्रयत्न करना है।
१२७ वृत्ति निर्भय करनेके लिए प्राण-जयके प्रयत्नका उपयोग हो सकता है।
१२८ अर्जुनके रोम-रोमसे 'कृष्ण-कृष्ण' की एक ही ध्वनि निकलती थी। इस कारण लोगोंने उसका नाम कृष्ण रखा। गीताका श्रोता-बक्ता वही है।
१२६ चार महावाक्योंमें एक-से-एक चढ़ती चार अद्वैत-भूमिकाएँ सूचित की हैं :
प्रज्ञानं ब्रह्म-अद्वैत-ज्ञान । अयमात्मा ब्रह्म-ईश्वर-साक्षात्कार । अहं ब्रह्मास्मि-आत्मानुभव। तत् त्वमसि-~~-विश्वोद्धार ।
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