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(१) ॥ॐ॥ श्रीगणेशायनमः ॐ नमोभगवतेवासुदेवाय॥ अथ श्रीविज्ञानकमलाकरे शुद्धविज्ञानकांडं प्रारभ्यते॥ ॥मंगलाचरणं|| ऋग्वेदस्यतरेयोपनिषदि शांतिपाठः।।
वाले मनसि प्रतिष्टिता मनोमे वाचि प्रतिष्ठित मावि रावि मए धि० वेदस्य म आणीस्थः श्रुतं मे मा प्रहासी रनेनाहो रात्रीन्संदधाम्य॒तं वदिष्यामि. सत्यं वदिष्यामि. तन्मामवतु. तक्तारमवत्ववतुमामवतु वक्तारमिति.हरिःडोम्. शांतिः शांतिःशांतिः अस्थार्थः॥ हे प्रकाशरूप आप अपरोक्ष होवो और मै जैसी वाणी कहूं तैसाही मनमे संकल्पहोवे जैसे मनमे संकल्प होवे तैसे वाणीसे कहूं और मेरे ताई वेदकी प्राप्ति करो। मेरा पठन कीयादवा विस्मरण न होवे तथा रात्रीदिवस वेद उच्चारणसे व्यतीत होवे मै वाणीसे सत्य संभाषण करों तथा सत्यब्रह्मका ही कथन करता रहूं सो ब्रह्म हमारीजन्ममरणसे रक्षा करे तथा श्रीगुरुजीकी रक्षाकरे पुनरुक्ति आदरार्थ कहीहै तीन ताप अध्यात्म अधिभूत अधिदेव तिनोंको शांत्यर्थ तीनशांति पाठका उच्चारण कीया है हरिः डोम्.
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