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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोई आकाशक फूल वा वंध्यापुत्रादिकोंका प्रतिबिंब दर्पणमे परता नहीं यांते जैसे प्रतिबिंबोंके बिंबरूप पदार्थ मिथ्या नदी तैसे जिन पदार्थोका प्रतिबिंब परमात्मा विषे परता है तिनोके बिंबरूप जगत्कों कैसे असत् जानना चाहीये सो उत्तर कहो। ॥श्रीगुरुरुवाच॥ हे शिष्य जहां दर्पण का उदका. दिक जड स्वच्छपदार्थ है तहां प्रतिबिंब ग्रहणकरने वास्ते बिंबोकी आकांक्षा होती है अरु जहां स्वप्न विषे साक्षीकी न्याई स्वयं चेतनही वस्तुके प्रति विंब ग्रहण करनेवाला होता है तहां चेतनको आपने विषे प्रतिबिंब ग्रहण वास्ते बिंबकी आकांक्षा होती दी नही, जैसे मनोराज अरु स्वप्नावस्थामे बिनारी बिंबके प्रतिबिंबरूप जगत् अनुभवमे आता है एसे श्रीवसिष्ठनेभी कहा है। ॥ तिस चेतनरूप महान् दर्पणमे संपूर्ण द्रष्टा दर्शन अरु दृश्यरूप जगत् एसे प्रतिबिंबित होता है जैसे नदीविषे तटके वृक्षोंका प्रतिबिंबपरता है॥ १०॥ यांते जे स्वप्न देशकालादि पदार्थ अनुभवमे आवे है ते प्रतिबिंबाके विनाहीदेखनेविषे आवते हे अरु जैसे दृष्टांतमे नदीविषे प्रतिबिंबोका कारण तटके वृक्ष है तैसे जाग्रत स्वप्न पदायाँके प्रतिबिंबोंका कारण अंतःकरण जानना ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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