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(१९) २॥यांते रज्जुका आवरण भंग न होनेते रज्जउपहित चेतनविषे जा अविद्या है सा साकार परिणामको प्राप्तहोती है सो सर्प सत्यहोवे तो रज्जु. ज्ञानसे नाश नहीहोता काहेते. सत्य तिसका नाम है जिसका तीनकाल विष नाश नही होवे. जो रज्जुमे सर्पमिथ्याहोवे तो वंध्यापुत्रवत् प्रतीत होना नहीचाहीये अरु प्रतीतहोवे है. रज्जुज्ञानसे नाशभी होवे है यांते सत् अरु असत्से विलक्षण होनेते सर्प अनिर्वचनीय कहा है तिस अनिर्वचनीय सर्पका जो भान अरु कथन सा अनिर्वचनीय ख्याति
३॥ यहां जैसे सर्प अनिर्वचनीय है तैसे सर्पका ज्ञानभी अनिर्वचनीय है अरु अविद्याका परिणाम है अंतःकरणका परिणामनही. काहते जो सर्पनाशवत् सर्पका ज्ञानभी नष्ट होजाता है जिसकाल रज्जु उपदित चेतनमे तमःप्रधान अविद्या साकार परिणामको पावे है तिसी कालविपे साक्षीमे स्थित जा अविद्या है सा सर्पके ज्ञानाकार परिणामको पावे है सर्प तथा सर्पकाज्ञान इन दोनों के उत्यत्तिविषे निमित्त रज्जुका आवरणभंग न होनाही है सर्पके अधिष्ठान रज्जुका ज्ञानजो है सो सर्प अ सर्पज्ञान इन दोनोंके नाशमे निमिनकारण जानना ॥
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