SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) * १॥ अथ त्रयोदश कमलमे रंतिदेव राजाकी कथा। * एक महाराजा रंतिदेव होताभया जैसे धर्मराजा वा हरिश्चंद्रराजा किसी कारणते स्वराजतेरहितहोते भये है तैसे इस रंतीदेवकीभी विनाराजते निर्जन वनमे स्थिति होतीभयी, सो स्वराजमे एसा दया धर्मसे समय व्यतीत कीया है कि जिसका गुणानुवाद स्वर्गलोकमें गायन होताथा ॥१॥ तिसी महा राजकी वनमे एसी स्थिति होतीभई जो ४८ दिन अन्न जल विना कुटुंब समेत क्षुधा पिपासासे पीडित होतेभये ॥२॥ एसी महेश्वर तिसकी परीक्षा करता भया. पश्चात् एक दिनमेस्वर्णके थालमे नानाविचित्र छपनप्रकारके भोग्यपदार्थ तथा जलपूर्ण पात्र परमेश्वर प्रेरित तिसके सन्मुख नयनगोचरभया ॥ ३ ॥ जब राजाक्षुधापिपासासे कांपताहवा अरु क्षुधापपासासें पीडित निजपरिवारको यथायोग्य अन्नजल देकरके शेषविभाग अपने अन्नजलके भक्षणमे प्रवृत्ति करने लगताही है तिलीक्षणमे एक क्षुधातुर ब्राह्मण अतिथिने याचना करी. हे प्रभो मै क्षुधातुरको खानेकों देवो तब राजाने तिसको परमात्माका स्वरूप जानकर नमस्कार स्तुति पूजा पूर्वक स्वभोजन विभागमेंसे अर्धविभाग ब्राह्मणदेवको समर्पण कीया. सो भूसुर प्रसन्नमन जाता रहा.पश्चात् खानेमे प्रवृत्ति कर्त्ताही है। For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy