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॥ भमिका ॥
इन परिभाषाओं में से जो अष्टाध्यायीस्थ परिभाषासूत्र हैं वे संधिविषय में व्याख्यापूर्वक लिख दिये हैं यहां केवल महाभाष्यस्थ परिभाषासूत्रों का व्याख्या. न है। परिभाषाओं का मुख्य तात्पर्य यही है कि दोषों का निवारण करके व्यव. स्था कर देना । इसीलिये इस ग्रन्थ को बनाया है कि व्याकरण के सन्धि आदि प्रकरणों में जो २ संदेह पड़ते हैं वे इन परिभाषाओं के पठन पाठन से अवश्य निवृत्त हुआ करेंगे । इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं। और इस में मूल परिभाषा के आगे जो संख्या. पड़ी है वह अष्टाध्यायो के सूत्र की है उस सूत्र को व्याख्या में महाभाष्य में वह परिभाषा लिखी है । और परिभाषा के पहिये जो संख्या है वह इस ग्रन्थ को है।
इति भूमिका
स्थान महाराणा जी का उदयपुर । आश्विन शुक्ल संवत् १८३८
दयानन्द सरस्वती
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