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सौवरः ॥
आशा | खलप्वि-आमा । यहाँ सकलवि खलप्पि सप्तम्यन्त स्वरितान्त शब्द है उन के यण से परे आकार अनुदात्त को स्वरित हो जाता है जैसे । स क व्यागा। रख लपव्याशा । इत्यादि ॥ ८४ ॥
८५-एकादेश उदात्तेनोदात्तः ॥०॥८।२।५॥ उदात्त के साथ जो अनुदाप्त का एकादेश है वह भी उदात्त ही हो नाता है। जैसे । अग्नी। वायू । यहाँ अग्नि वायु शब्द अन्तोदात्त हैं। उन का अनु.
दात्त विभक्ति के साथ एकादेश हुआहै । इसी प्रकार। वृक्षः । लक्षः। इत्यादि।८५॥ . ८६-स्वरितो वाऽनुदात्ते पदादौ । अ० ॥ ८।२। ६ ॥
नो उदात्त के साथ एकादेश है वह पदादि अनुदात्त के परे विकल्प करके 'खरित हो पक्ष में उदात्त हो । सु उत्थितः । सूतिय तः । सूस्थितः। वि-ईक्षतेवो क्षते । वौक्षते । इत्यादि ८६ ॥ इति श्रीमदयानन्दसरस्वतीनिर्मितः सौवरो ग्रन्थः समाप्तः ॥
संवत् १९३९ भाद्रशुक्ल १३ चन्द्रवार ॥
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