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अथ भूमिका ॥
~--:00:-- सब उणादिगणस्थ शब्द इस वक्ष्यमाण एक सूत्र की विशेष व्याख्या में हैं:
उणादयो बहुलम् ॥ ५० ॥३॥ ३ ॥१॥ वर्तमान काल में धातुओं से उणादि प्रत्यय बहुल करके होते हैं । भूतेऽपि दृश्यन्ते ॥ १० ॥ ३।३।२॥ और कहीं २ भूतकाल में भी इन का विधान दीख पड़ता है ॥ भविष्यति गम्यादयः ॥ अ० ॥ ३।३।३॥
और गमी आदि गणपटित वक्ष्यमाण शब्द भविष्यत्काल में ही होते हैं। उणादिप्रत्ययों के होने के लिये यह तीनों काल का नियम है । गम्यादि शब्द। गमी । आगामी । प्रस्थायी । प्रतिरोधी । प्रतिबोधी । प्रतियोधी । प्रतियोगी । प्रतियायी । आयायो । भावी । इन से अन्य शब्द भूत
और वर्तमान अर्थों के बोधक होते हैं। अब जितनी प्रकृतियों में जितने उणादि प्रत्यय कहे हैं उतने ही जानना चाहिये वा कुछ विशेष इस लिये :
बाहुलकं प्रकतेस्तनुदृष्टेः प्रायसमुच्चयनादपि तेषाम् । कार्यसशेषविधेश्च तदुक्तं नैगमरूढिभवं हि सुसाधु ॥ १ ॥ नाम च धातुजमाह निरुक्त व्याकरणे शकटस्य च तोकम् । यन्न पदार्थविशेषसमुत्थं प्रत्ययतः प्रकृतेश्चतदूह्यम् ॥ २ ॥ संज्ञासु धातुरूपाणि प्रत्ययाश्च ततः परे । कार्यादिद्यादनूबन्धमेतच्छास्त्रमुगादिषु ॥ ३॥ महाभाष्ये ॥
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