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सामासिकभूमिका ॥
हुआ विदित होता है । और जैसे संसृष्टोऽग्निरिति । ऐसा कहने से भी उक्तही अर्थ विदित होता है और जहां व्यपेक्षा सामर्थ्य होता है, वहां संपेक्षितार्थः समर्थः और संवद्धार्थः समर्थ इति यहां अनेक पदों का सम्बन्धमात्र प्रयोजन है इस व्यपेक्षा में अनेक पद अनेकस्वर अनेक विभक्ति वर्तमान रहती हैं ॥
वा०-स विशेषणानां वृत्तिन वृत्तस्य वा विशेषणं न प्रयुज्यत इति वक्तव्यम् ॥
अनेक विशेषण युक्त विशेष्य का समास और समस्त का विशेषण के साथ योग नहीं होता । सविशेषण जैसे ऋद्धस्य राज्ञः पुरुषः यहां राजा का विशेषण ऋद्ध होने से पुरुष के साथ राजन् शब्द का समास नहीं होता ( वृत्त ) राजपुरुषः इस समस्त राजन् शब्द के साथ ऋद्ध विशेषण का योग भी नहीं हो सकता * इसलिये समासः विद्या को समझ लेना सब मनुष्यों को अत्यन्त उचित है ।
इति भूमिका ॥
* अर्थात् वही असमर्थ होता है कि जिस का सम्बन्ध अनेक पदों के साथ हो जैसे राजन् शब्द का सम्बन्ध ऋद्ध और पुरुष के साथ होने से समास न हुआ वैसे सर्वत्र समझना चाहिये और जहां प्रधान की अपेक्षा हो वहां तो सविशेषण और वृत्त का भी विशेषण के साथ योग होता है जैसे देवदत्तस्य गुरुकुलम् यहां गुरु प्रधान है। इसलिये कुल के साथ समास और देवदत्त का सम्बन्ध भी हो गया ।
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