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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्चनविधिप्रकरणम् ३. (२९) ज्ञानमुद्रयैकमंकितं करं पुस्तकेन चिह्नितं तथापरम् ॥ विभ्रती हिमेंदुकुन्ददीधिति पंकजासनां स्मरेत्सरस्वतीम् ॥ ॥१७॥ गदायुधः सर्वनिधानभर्ता महोदरः कुंडलवान्किरीटी। श्वानं समभ्यर्च्य विचित्रवर्णो ध्येयःक्षणं वैश्रवणो नरेण १८॥ ॥ टीका ॥ प्रकारेण दुर्गायुगलादिकाना ध्यानं विदध्यात् येनार्चनजापहोमध्यानेषु एकतानस्य एकाग्रचित्तस्य नरस्य देवास्तुष्यन्ति संतुष्टिभाजो भवन्ति ॥ १६ ॥ ज्ञानमुद्रेति ।। एवंविधां सरस्वती स्मरेत् ध्यायेत् ॥ किं कुर्वती विभ्रती करं कीदृशं ज्ञानमुद्रया अंकितं चिह्नितं ज्ञानमुद्रा त्वेवम् । “अंगुष्ठानामिके सक्ते हृदये विनियोजिते। ज्ञानमुदेयमाख्याता देवानामपि दुर्लभा॥" तथापरं द्वितीयं करं पुस्तकेन चिहितं कीहशी हिमेंदुकुंददीधिति हिमं तुहिनं इंदुश्चंद्रः कुंदं पुष्पविशेषः तद्वत् दीधितिः कातिर्यस्याः सा तथा पंकजासनामिति ।पंकजमेवासनमुपवेशनस्थानं यस्याः सा तथेति पोदकी प्रपूज्येत्यर्थः ॥ १७ ॥ गदायुध इति ॥ श्वानमभ्यर्च्य नरेण वैश्रवणः कुबेरः क्षणं ध्येयः। ध्यानविषयी कार्यः कीदृक् वैश्रवणः गदायुध इति गदा प्रहरणविशेष आयुधं यस्य स तथा। पुनः कीदृक् सर्वनिधानभति भूम्यंनिहितं धनं निधानं तेषां सर्वेषां भर्ता स्वामी । पुनः कीदृशः महोदर इति महदुदरं यस्येति स त ॥ भाषा॥ कार करके दुर्गा युगलकुं आदिलेके पांचोनको ध्यानकर जा ध्यानकरके अर्चन जप होम ध्यान इनमें एकाग्रचित्त जाको ता मनुष्यके ऊपर देवता प्रसन्न होयह ॥ १६ ॥ ज्ञानमुदति ॥ ज्ञानमुद्राकरके चिह्नित अंगुठा अनामिका मिलाय हृदयमें युक्तकरै याकू ज्ञान मुद्रा कहैहैं, एक हस्त ज्ञानमुद्रासहित धारण करे, और दूसरो हस्त पुस्तक करके युक्त धारण करे, और चंद्रमा और कुंदको पुष्प ताकीसी है कांति जाकी, और तैसे ही कमलको है आसन जाको ऐसी जो सरस्वती पोदकी ताय ध्यानकरे ॥ १७ ॥ गदायुध इति ॥ श्वानको पूजन करके फिर गदा है आयुध जाके और फिर संपूर्ण पृथ्वीमें भीतर धरयो हुयो धन तिनको स्वामी और फेर महान् है उदर जाको और कुंडलयुक्त किरीट मुकुट जाके तैसे ही नाना प्रकारको है वर्ण जाको ऐसो वैश्रवण जो कुवेर सो मनुष्यनकरके क्षणमात्र ध्या For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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