________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भाषाटीकासमेत ।
(३३)
चाथ संविशेत् ॥ यो नरस्तस्य सुलभं कृतान्तनिलयं भवेत् ॥ ८६ ॥ गोमयं कर्दमं रक्षां धूलिं यश्च विमर्दयेत् ॥ स्वप्नमध्ये शरीरं स्वं सत्वरं स मृतो भवेत् ॥ ८७ ॥ गोरोचनानि शानीलीकज्जलैर्गात्रलेपनम् ॥ जायते यस्य वै स्वप्ने स स्याच्छीघ्रं यमातिथिः ॥८८॥ मेदो दुर्गन्धियुक्तान्नं यः खादति नरो भुवि ॥ स्वप्नमध्ये च तस्य स्यादवश्यं मरणं रुजः॥ ॥ ८९ ॥ काञ्जिकक्षौद्रकाणां तैलस्य च घृतस्य च ॥ स्वप्नमध्ये भवेद्यस्याङ्गाभ्यङ्गः स म्रियेत वै ॥ ९० ॥ कुविन्दसूचिकाकारतक्षायस्कार चर्मिकाः ॥ धीवराः शबराः स्वयं स्पृशन्ति स दुःखभाक् ॥ ९१ ॥ विकलाङ्गाः पङ्गवश्व वैद्याः खर्वाश्च नर्तकाः || चेटाश्च द्यूतकाराश्च यं स्पृशन्ति स दुःखभाक् ॥ ९२ ॥ कुरंटकः करञ्जश्च कुटजः सप्तपल्लवः ॥ एतेषां दर्शनं नाशकरं जग्धिस्तु किं ततः ॥ ९३ ॥ कर्णिकारः शिशपा च धवः खदिर एव च बदरी च शमी चैषां दर्शनं नाशकारकम् ॥९४॥ कुशकाशाडुरतृणकपाकमदनद्रुमाः ॥ स्वप्ने दृष्टिपथं याता महादुःखकरा ध्रुवम् ॥ ९५ ॥ जपाचम्पकपुष्पाणि रक्तानि यदि को प्राप्त होता है || ८६ ॥ जो स्वप्नमें गोबर को कीचको राखको अपने शीघ्र मरताई ॥ ८७ ॥ गोलोचन हलदी नलि कज्जल जिसके शरीर में मरताहे ॥ ८८ ॥ जो पुरुष चवको दुर्गन्धियुक्त अन्नको स्वप्नमें खाता है होता है ॥ ८९ ॥ कांजी सहत महा तिल घृतका जिसके शरीरपर लेप होता है वह मरता है ॥ ९० ॥ जिस पुरुषको स्त्र में जुलाहा दर्जी बढई लुहार चमार धीमर म्लेच्छ स्पर्श करते हैं वह दुःखी होता है ॥ ९१ ॥ जन्म से किसी अंगरहित, लङ्गडे हकीम विलसटिया नट चेटी जुआरी जिसको स्पर्श करते हैं वह दुःखभागी होता है ।। ९२ पीला गुलाबांस कज्जुआ कुडावृक्ष सप्तपर्ण इनका दर्शन नाश कारक है खाना तो क्या है || ९३ || कनेर सीसम धव खैर वेर जण्ड इनका दर्शन नाशकारक है ॥ ९४ कुशकांसके अंकुर तृण माकल के वृक्ष जिसको स्वप्न में दीखें उसे निश्चय दुःख होय ॥ ९५ जो पुरुष जपाके पुष्प चम्पेके पुष्प लाल देखता है वह शीघ्र मरता है ॥९६॥
३
For Private And Personal Use Only
शरीर में मलता है वह
मलाजाता है वह शीघ्र
उसका अवश्य मरण