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श्ववेष्टिते यात्राप्रकरणम्।
(४८१) बलेन वामो यदि नीयते श्वा कष्टात्तदाल्पं विदधाति लाभम्तारोऽथवा वामगतिर्भयेन श्वानर्थमर्थं च करोति यातुः।। ॥ १९९ ॥ घुरघुरारवमुच्चरति क्रुधाभषति यो भषणो भयतोऽथवा ॥ भ्रमति वाऽथ मृषैव यतस्ततो ध्रुवमसौ विदधाति धनक्षयम् ॥२००॥ खनन्धरित्रीमसुखावहः स्याल्लोलन्पुनः स्यादनिवृत्तिहेतुः॥धुन्वञ्च्छिरश्चौरभयं करोति व्यात्ताननस्त्वीहितकार्यनाशम् ॥२०१॥ आघ्राय पृष्ठे दशनैर्नखैर्वा वस्त्रं विकर्षन्विदधात्यनर्थम् ॥ तथाऽविधोऽग्रे यदि सारमेयः प्रवासिनां तत्कुरुतेऽर्थलाभम् ।। २०२॥
॥टीका॥ श्वानः पुरस्तात्तारा व्रजति तदा पथि चौरभीतिः स्यात् ॥१९८॥ बलेनेति ॥ यदि श्वा बलेन बलात्कारेण वामः नीयते तदा कष्टात् अल्पलाभं विदधाति । अथवा भयेन तारः वामगतिश्च श्वा भवति तदा यातुः अनर्थमर्थं च करोति ॥ १९९ ॥ घुरघुरेति ॥ क्रुधा घुरघुरारवं यः उच्चरति अथवा यःभयतः भषणी भषति । अथ मृङ्गव मिथ्यैव यतस्ततः भ्रमति । असौ श्वानः ध्रुवं धनक्षयं विदधाति॥२०॥ खननिति ॥धरित्री खननसुखावहः स्यात् । लोलन्पुनः अनिवृत्तिहेतुः अप्रत्यागमनं. कारणं स्यात् । शिरो मस्तकं धुन्वंश्चौरभयं करोति व्यात्ताननस्तु विस्फाटित. वस्तु ईहितकार्यनाशं करोति ॥ २०१ ॥ आवायेति ॥ श्वा पृष्ठे आवाय द
॥ भाषा॥
क्त होय रहे होय वे श्वान अगाडी ते जेमने चले जाय तो मार्गमें चीरको भय होय ॥ ॥ १९८ ॥ बलेनेति ॥ जो श्वान बलात्कारतूं वामभागमें चल्यो जाय तो कष्टसू अल्प लाभ करै. अथवा भय करके जेमने भागमें वा वांये भागमें श्वान आय जाय तो गमनकर्ताक अनर्थरूप अर्थ करे ॥ १९९ ॥ घुरघुरेति ॥ क्रोधकरके घुरघुर शब्द उच्चारण करे अथवा भयमूं भूसे अथवा वृथा इतको इत भ्रमतो होय वो श्वान निश्चय धनको क्षय करे ॥ २०० ॥ खननिति ॥ पृथ्वी खोदतो होय तो दुःखकू कर. चलतो होय तो दुःख करे. मस्तक हलावतो होय तो चौरको भय करे. और मुख फाडतो होय तो वांछित कार्यको नाश करै ॥ २०१॥ आवायेति ॥ श्वान पीठमें सूंघ करके दांत नखः इन करके वस्त्रकं खैचतो होय तो अनर्थ करे, जो श्वान अगाडीकू ऐसो होय तो वो गमन कर्ता
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