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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४४८ ) वसंतराजशाकुने - अष्टादशो वर्गः । अक्रूरहमूर्धनि दत्तहस्तो निमीलिताक्षोऽर्धनिसृष्टदृष्ट्या ॥ कौटिल्यगामी निकटं जित्वा प्रियंकरः श्वा न ददाति युद्धम् ॥ ८५ ॥ यक्षो भषन्नंबरमीक्षमाणः कर्णौ धुनोत्युत्पतति प्रधावन् ॥ यो वा प्रसर्पत्यपवृत्य गत्वा स संपरायप्रशमाय राज्ञोः ॥ ८६ ॥ प्रदक्षिणादुत्तरमप्रदक्षिणं यदा तदा संधिरनंतरं रणात् ॥ करोति यक्षो यदि वै व्यतिक्रमात्तदा तु संधिः प्रथमं रणश्चिरात् ॥ ८७ ॥ ॥ टीका ॥ रेतैः दिवस्थानचेष्टानिनदैः प्रदीप्तैः न संधिः मेलः न च संपारायः संग्रामः स्यात् ॥ ॥ ८४ ॥ अक्रूरेति ॥ यः श्वा अक्रूरदृङ्मूर्धनि दत्तहस्तः निमीलिते मुद्रिते अक्षिणी चक्षुषी येन यस्य वा स तथोक्तः । अर्धनिसृष्टा दत्ता दृग्दृष्टिर्येन वा स तथोक्तः निकटं व्रजित्वा कौटिल्यगामी स प्रियंकरोऽपि श्वा युद्धं न ददाति ॥ ८५ ॥ यक्ष इति ॥ यः यक्षः अंबरमाकाशं वीक्षमाणः भषन्प्रधावन्दुतं गच्छन्कर्णौ धुनोति उत्पतति उ चलति वा यो वा गत्वा अपवृत्य व्याघुट्य प्रसर्पति प्रकर्षेण गच्छति स राज्ञोः संपरायप्रशमाय संग्रामनिवारणाय भवति ।। ८६ ।। प्रदक्षिणादिति । यदा श्वा प्रदक्षिणादपसव्यादुत्तरमग्रे प्रदक्षिणं वामं गच्छति तदा रणात्संग्रामादनंतरं पश्चा• संधिः स्यात् । यदि यक्षः ध्यतिक्रमाद्वैपरीत्येन करोति तदा प्रथम संधिः स्या ।। भाषा ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो मिलापभी न होष संग्रामभी नहीं होय ॥ ८४ ॥ अक्रूरात ॥ शांतदृष्टि होय मस्तकपे हाथ धन्य होय नेत्र जाके मिचे हाय आधी दृष्टिसूं देखतो हुयो बलिदानके पास जाय करके कुटिल गमन करे. अर्थात् तिरछो गमन कर जाय तो वो श्वान प्रियको करनेवालो है तोडूं युद्धकूं नहीं देवै ॥ ८५ ॥ यक्ष इति ॥ जो श्वान शब्द करत आकाशकूं देखतो यो कान हलावे और दौडतो हुयो उछलपडे अथवा अगाडी जाय पीछो वगद कर फिर प्रकर्ष करके गमन करे तो राजानके संग्रामकूं निवारण करे ॥ जो श्वान जेमने माऊं होयकर पीछे वामभागमें गमन करे लाप होय जाय, जो वामभाग में होयकर पीछे जेमनेमाऊं ८६ ॥ प्रदक्षिणादिति ॥ तो प्रथम संग्राम होय पीछे मि-गमन करे तो प्रथम तो मिलाप For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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