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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३२) वसंतराजशाकुने-अष्टादशो वर्गः। वरस्य कन्यावरणोद्यतस्य कुमारिकायाः पतिमर्थयंत्याः ॥ आख्यायतेऽन्योन्यपरीक्षणार्थ क्रमेण चेष्टा सरमासुतस्य ॥ ॥२९॥ कौलेयके दक्षिणचष्टिते स्यात्कन्याविवाहो न तु वामचेष्टेः ॥ शुन्या समं केलिरते सुखेन तयोढया सार्द्धमहानि यांति ॥३०॥ कंडूयते दक्षिणमंगभागं स्तंभे यदर्थ वरणे हृदिस्थे । ऊढा भवेत्सा सुतवित्तवद्ध्यै वामांगकंडू- . यनमप्रशस्तम् ॥३१॥ ॥ टीका ।। वरस्योति ॥ कन्यावरणोद्यतस्य वरस्यः वोढुः पति अर्थयंत्याः वांछंत्याः कुमारिकायाः कन्यायाः सरमासुतस्य सरमा शुनी तस्याः सुतःश्वा तस्य अन्योन्यपरीक्षणार्थ परस्परपरीक्षाकृते चेष्टा क्रमेण आख्यायते ॥ २९ ॥ कौलेयक इति ॥ दक्षिणचेष्टिते कौलेयके शुनि कन्याविवाहः स्यात् न तु वामचेष्टे कचित्कन्याविवायेति पाठोपि दृश्यते । शुन्या समं केलिरते सति मैथुनसुखे सति तया ऊढया साई सुखेन अहानि दिनानि यांति गच्छंति ॥ ३० ॥ कंडूयते इति ॥ यदर्थ यस्याः कृते वरणे हृदिस्थे सति श्वा दक्षिणमंगभागं स्तंभे कंडूयते तदा सा ऊढा ॥ भाषा॥ निश्चयकर ये पांच दप्ति हैं. और पांच ही ये शांत हैं. ऐसे ही और जे पोतकीकू आदिले जे शकुन तिनमें विद्वानपुरुष करके ये पांच शांत और पांच दीप्त विचारने योग्यहैं ॥ २८ ॥ इति श्रीवसंतराजभाषाटीकायां श्वानचेष्टिते राज्याधिकारप्रकरणं द्वितीयम्॥२॥ वरस्यति ॥ कन्याके वरबेकू वांछित होय रह्यो वाकू और पतिकू बरबेकी इच्छा कर रही वा कन्याकू इन दोनोन परस्पर परीक्षा करवेषं सरमा नाम जो इंद्रकी कुतिया वाको बेटा श्वान ताकी चेष्टा क्रम करके कहैहैं ॥ २९ ॥ कौलेयक इति । शुनी जो कुतिया जेमने अंगकी चेष्टा करती होय तो कन्या विवाहके योग्य जाननो, जो बाई चेष्टा करती होय तो वा कन्याको विवाह नहीं करनो. कुतिया सहित श्वान मैथुन सुख करतो होय तो ता व्याही हुई कन्या करके सहित सुखपूर्वक दिन व्यतीत होय ॥ ३० ॥ कंड़यत इति ॥ जा कन्याके अर्थ हृदयमें विचार करलियो होय और श्वान जेमने अंग भागकं स्तंभमें खुजा. वतो होय तो वो विवाह हुये पीछे सुत धन इनकी वृद्धिके अर्थ होय. और वांये अंगको For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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