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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७८) वसंतराजशाकुने-चतुदशो वर्गः । इति श्रीवसंतराजशाकुने सदा शोभने समस्तसत्यकौतुके विचारिता पिंगला इति त्रयोदशो वर्गः॥ १३॥ विचारयामोऽथ चतुष्पदानां ग्रामाश्रयाणां वनचारिणां च ॥ खुरान्वितानां नखिनांच सम्यग्जातिस्वरालोकनचेष्टितानि॥१॥ भूपृष्ठपाताल जलांबराणि चतुष्पदैर्यत्समधिष्ठितानि ॥ अतः प्रपये शरणं शरण्यान्परोपकारजतिनो द्विपादीन् ॥ २ ॥ उदीरयन्मंत्रमिमं मनोज्ञनैवेद्यपुष्पाक्षतधूपदीपैः ॥ अभ्यर्च्य तिर्यग्गमनान्विमृश्य कार्य ततस्तच्छकुनानि पश्येत् ॥३॥ ॥टीका ॥ मासतः एकादश प्रकरणानि भवंति शाकुने पिंगलास्ते समयसंख्यया वृत्तानां शत इयं भवति ॥७॥ इति शत्रुनयकरमोचनादिसुकृतकारिमहोपाध्यायश्रीभानुचंद्रविरचितायां वसंत राजशाकुनटीकायां पिंगलारुते त्रयोदशो वर्गः ॥ १३ ॥ विचारयाम इति ॥ चतुष्पदानां खुरान्वितानां नखिनां च गतिस्वरालोकनचेष्टितानि वयं विचारयामः ॥ १ ॥ भूपृष्ठेति ॥ यद्यस्मात्कारणाद्भपृष्ठपाता. लजलांबराणि चतुष्पदैःसमधिष्ठितानि अतःशरण्याच्छरणयोग्यान्परोपकारवतिनः परोपकार एव व्रतं येषां तथा द्विपादीन्दिपप्रभृतीञ्छरणं प्रपद्ये ॥२॥ उदीरयनिति । इमं पूर्वोक्तं मंत्रमुदीरयन्पठन्मनोज्ञः मनोहारिभिः नैवेद्यपुष्पाक्षतधूपदीपै ॥ भाषा॥ तेरवें वर्गमें या प्रकार ग्यारै प्रकरण कहेहैं. तिनमे पिंगलारुत शकुन है ताके सब श्लोकनकी संख्या दोयसै हैं ॥ ७ ॥ - इति श्री जयशंकरतनयज्योतिर्विच्छ्रीधरविरचितायां वसंतराजशाकुने भाषाटीकायां पिंगलारुत्ते त्रयोदशो वर्गः॥ १३ ॥ विचारयाम इति ॥ अब ग्राममें रहबेवालेनके वनमें रहवेवालेनके खुरवान् नखवालेनके इन चौपदानकी गतिस्वर आलोकन चेष्टा तिनैं हम कहेहैं ॥ १॥ भूपृष्ठेति ॥ चतुष्पद जे हाथीकू आदिले चार पाँवनके जीव जिनमें हैं ऐसे पृथ्वी, पाताल, जल, आकाश और शरणके योग्य परोपकार है व्रत जिनको ऐसे हाथीकू आदि ले जे चोपदा तिनके मैं शरण हूं ये मंत्ररूप श्लोक है ॥ २॥ उदीरयनिति ॥ या मंत्र• बोलतो जाय और पुष्प, अक्षत, धूप, For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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