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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंगलारुते यात्राप्रकरणम् । (३७३) गत्वा स्ववृक्षादपरत्र भक्ष्यं संप्राप्य तत्रैव कृतस्थितिश्चेत ॥ तदध्वनीनो धनमर्जयित्वा स्थिति विधत्ते परदेश एव । ॥ १८६॥ वामे समश्च बजतां प्रशांते दीप्ते समो दक्षिणतश्च शस्तः॥ स्त्रीणां गमे दक्षिणतोऽनिलोत्थःशांतः समश्वापि नृणां प्रवेशे ॥ १८७॥ आवासहेतोर्विहिते स्थिरत्वे वायव्यशब्दो गदितोऽतिभद्रः ॥ यात्रासु जाते मरुदारवे तु प्रस्थायिनो भूरि भवत्यभद्रम् ॥ १८८॥ भौमे ध्वनौ व्योमनि लाभहानिः कलिनभोजेऽनिलजे तु मृत्युः ॥जाते खेदक्षिणतो नभोजे विनोऽथवा स्यात्पथिकस्य रोगः ॥१८९॥ ॥ टीका ॥ गत्वेति ॥ स्ववृक्षादपरत्र वृक्षं गत्वा भक्ष्यं संप्राप्य तत्रैव कृतस्थितिश्वेत्तदा अध्वनीनः पथिकः धनमर्जयित्वा परदेशे एव स्थितिं विधत्ते ॥ १८६॥ वामे इति॥बजतां वामे प्रशांतः समः शब्दः शस्तः दक्षिणेऽसमः शब्दः शस्तः स्त्रीणां गमे दक्षिणतोऽनिलोत्थः शांतः नृणां प्रवेशे समश्च शस्तः॥ १८७ ॥ आवासहतोरिति ॥ आवासहेतोः स्थिरत्वे विहिते वायव्यशब्दोतिभद्रो गदितः यात्रासु मरुदारवे जाते प्रस्थायिनः पथिकस्य भूरि अभद्रं भवेत् ॥ १८८॥ भौमइति ॥ भौमे ध्वनौ व्योमनि लाभहानिः स्यात् । नभोजे कलिर्भवति । अनिलजे तु मृत्युर्भवति । दक्षिणतो नभोजे जाते विनः। पथिकस्य रोगः स्यात् ॥१८९॥ ॥ भाषा॥ भक्ष्य वाकू वहां प्राप्त होय और वो वहांही भक्ष्य खाय करके जो चलो आवै तो मार्गीभी वहां जाय धन संचय कर वहांको वहांही धन खायकर घरकू आवै ।। १८५॥ गत्वेति ॥ जो पिंगला अपने वृक्षते और वृक्षप जायकर भक्ष्य प्राप्त होय करके वहां ही स्थित होय जाय तो मार्गीभी परदेशमें जाय धनसंचयकरके परदेशमेंही रहै ॥ १८६ ॥ वामे इति ।। गमनकर्ता पुरुषके वामभागमें प्रशांत सम शब्द योग्य है और दक्षिण भागमें दीप्त असमशब्द शुभ है और स्त्रीनके गमनमें दक्षिणमें वायुते उठो हुयो शांतशब्द शुभ है. मनुष्यनकू प्रवेशमें समशब्द शुभ है ॥ १८७ ॥ आवासहेतोरिति ॥ निवासमें स्थिरभाव कह्योहै तामें वायव्य शब्द अतिकल्याणकारी कोहै और यात्रानमें मारुत शब्द होय तो मार्गीको बहुत अकल्याण करै ॥ १८८ ॥ भौम इति ॥ जो पिंगलके पृथ्वीमें हुयो शब्द और For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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