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पिगलारुते शुभचेष्टाप्रकरणम् । (३६९) मुखे च कंड्यति भक्ष्यभोज्यमालिंगनं वक्षसि बांधवस्य ॥ लाभं प्रियाया युवतर्विशेषादहून्पशून्यच्छति पिंगला चेत् ॥१७१ ॥ कक्षाप्रदेशेधनपुत्रलब्ध्यै कुक्षावपि स्यात्सुखसंगमाय ॥ पार्थे प्रियाणां परिरंभणाय स्थानाप्तिसंपत्सुखलब्धये च ॥ १७२॥ भर्त्तव्यपोषं धनधान्यलाभं कंड्यमानो जठरं ददाति ॥ कटिं पुनः स्त्रीकटिसूत्रवस्त्रप्रात्यै भवेपिंगलिका नराणाम् ।।१७३।। भवेनितंबे वरयोपिदाप्तिर्जानूरुभागेऽरिपराजयः स्यात् ॥ कंडूयनें धौ तदलंकृतीनां लाभोऽन्यदेशाविणागमश्च ॥ १७४ ॥
॥टीका ॥ करींद्रस्याधिरोहः स्यात् ॥ १७० ॥ मुख इति पिंगला मुखे कंडूयति चेदभीष्टं भोज्यं दत्ते वक्षसि आलिंगनं बांधवस्य लाभं प्रियायाविशेषाावतेः लाभमित्यादीनि बहून्पशून्यच्छति ॥ १७१ ॥ कक्षेति ॥ कक्षाप्रदेशे कंडूतिर्धनपुत्रलब्ध्यै स्यात् कुक्षावपि कंडुतिः सुखसंगमाय स्यात् पार्श्वे प्रियाणां परिरंभणाय स्यात् तथा स्थानाप्तिसंपत्सुखलब्धये च ॥ १७२ ॥ भर्त्तव्यति ॥ जठरं कंडूयमानः भर्तव्यपोष धलधान्यलाभं ददाति कटिं कंडूयमानापिंगलिका नराणांस्त्रीकटिसूत्रवस्त्राप्तये भवति ॥ १७३॥ भवेदिति ॥ नितंबे वरयोषिदाप्तिर्भवति जानूरभागे अरिपराजयः स्यात् अंग्रौ कंडूयने सति तदलंकृतीनां लाभः अन्यदेशाबविणागमश्च स्यात् ॥ १७४ ।।
॥ भाषा॥
और कंधा ग्बुजावतो होय तो हाथीपै बैठावे ॥ १७० ॥ मुख इति ॥ जो पक्षी पिंगल अपने मुखको ग्वुजाय रह्यो होय तो भक्ष्य भोज्य वांधवको वक्षस्थलमें आलिंगन, प्यारी स्त्रीको लाभ, और बहुतसे पशु ने देवै ॥ १७१ ॥ कक्षेति ॥ जो कांख खुजाती होय तो धन पुत्र देवै और कुंख खुजावती होय तो सुख संगम देव, दोनों पसवाडे खुजाती होय तो प्यारेनको मिलाप, और स्थानकी प्राप्ति. संपदा, सुख इने देवै ॥ १७२ ।। भर्तव्येति ॥ जो पिंगल उदरकू खजावे तो भरण, पोषण. धनधान्यको लाभ ये देवै. जो पिंगलिका कटि खुजाती होय तो मनुष्यनकू स्त्री, कटिसूत्र, वस्त्र ये देवै ॥ १७३ ॥ भवेदिति ॥ जो नितंब जो कटिके पिछाडीको भाग ताकू खुजावे तो सुंदरस्त्रीको प्राप्ति होय. और जानु उरु भाग इनै खुजावे तो वैरीको पराजय होय. और चरण खुजावे
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