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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिगलारुते शुभचेष्टाप्रकरणम् । (३६९) मुखे च कंड्यति भक्ष्यभोज्यमालिंगनं वक्षसि बांधवस्य ॥ लाभं प्रियाया युवतर्विशेषादहून्पशून्यच्छति पिंगला चेत् ॥१७१ ॥ कक्षाप्रदेशेधनपुत्रलब्ध्यै कुक्षावपि स्यात्सुखसंगमाय ॥ पार्थे प्रियाणां परिरंभणाय स्थानाप्तिसंपत्सुखलब्धये च ॥ १७२॥ भर्त्तव्यपोषं धनधान्यलाभं कंड्यमानो जठरं ददाति ॥ कटिं पुनः स्त्रीकटिसूत्रवस्त्रप्रात्यै भवेपिंगलिका नराणाम् ।।१७३।। भवेनितंबे वरयोपिदाप्तिर्जानूरुभागेऽरिपराजयः स्यात् ॥ कंडूयनें धौ तदलंकृतीनां लाभोऽन्यदेशाविणागमश्च ॥ १७४ ॥ ॥टीका ॥ करींद्रस्याधिरोहः स्यात् ॥ १७० ॥ मुख इति पिंगला मुखे कंडूयति चेदभीष्टं भोज्यं दत्ते वक्षसि आलिंगनं बांधवस्य लाभं प्रियायाविशेषाावतेः लाभमित्यादीनि बहून्पशून्यच्छति ॥ १७१ ॥ कक्षेति ॥ कक्षाप्रदेशे कंडूतिर्धनपुत्रलब्ध्यै स्यात् कुक्षावपि कंडुतिः सुखसंगमाय स्यात् पार्श्वे प्रियाणां परिरंभणाय स्यात् तथा स्थानाप्तिसंपत्सुखलब्धये च ॥ १७२ ॥ भर्त्तव्यति ॥ जठरं कंडूयमानः भर्तव्यपोष धलधान्यलाभं ददाति कटिं कंडूयमानापिंगलिका नराणांस्त्रीकटिसूत्रवस्त्राप्तये भवति ॥ १७३॥ भवेदिति ॥ नितंबे वरयोषिदाप्तिर्भवति जानूरभागे अरिपराजयः स्यात् अंग्रौ कंडूयने सति तदलंकृतीनां लाभः अन्यदेशाबविणागमश्च स्यात् ॥ १७४ ।। ॥ भाषा॥ और कंधा ग्बुजावतो होय तो हाथीपै बैठावे ॥ १७० ॥ मुख इति ॥ जो पक्षी पिंगल अपने मुखको ग्वुजाय रह्यो होय तो भक्ष्य भोज्य वांधवको वक्षस्थलमें आलिंगन, प्यारी स्त्रीको लाभ, और बहुतसे पशु ने देवै ॥ १७१ ॥ कक्षेति ॥ जो कांख खुजाती होय तो धन पुत्र देवै और कुंख खुजावती होय तो सुख संगम देव, दोनों पसवाडे खुजाती होय तो प्यारेनको मिलाप, और स्थानकी प्राप्ति. संपदा, सुख इने देवै ॥ १७२ ।। भर्तव्येति ॥ जो पिंगल उदरकू खजावे तो भरण, पोषण. धनधान्यको लाभ ये देवै. जो पिंगलिका कटि खुजाती होय तो मनुष्यनकू स्त्री, कटिसूत्र, वस्त्र ये देवै ॥ १७३ ॥ भवेदिति ॥ जो नितंब जो कटिके पिछाडीको भाग ताकू खुजावे तो सुंदरस्त्रीको प्राप्ति होय. और जानु उरु भाग इनै खुजावे तो वैरीको पराजय होय. और चरण खुजावे २४ For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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