________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३६६ )
वसंतराजशाकुने - त्रयोदशी वर्गः ।
मृत्युप्रदौ वारिमरुन्निनादौ भयंकरौ तोयहुताशशब्दौ ॥ विनाशदौ वातवियद्विरावौ नभोमहीजौ कुरुतोऽर्थनाशम् ॥ १६१ ॥ भंगं विधत्तः पवनांबरोत्थौ तौ व्यत्ययान्मृत्युकृतौ भवेताम् || अलं प्रसंगेन रखाः क्रमेण भद्रंकराः पार्थिवपूर्वकाश्च ॥ १६२ ॥ पिंगदिदृक्षुरनीक्षितपिंगः पश्यति संगतशब्दितचेष्टम् ॥ यद्यपरं विहगं तदभीष्टं स्यात्फलमन्यदपेक्षिततुल्यम् ॥ १६३ ॥
॥ टीका ॥
मृत्यू स्याताम् आप्यादूर्द्ध नाभसे स्थानहानिः स्यात् दुर्जनैश्च सार्धं संगः स्यात् ॥ १६० ॥ मृत्युप्राविति ॥ चारिमरुन्निनादौ मृत्युप्रदौ स्तः तोयहुताशशब्दौ भयंकरौ स्तः वातवियाद्वेरावौ विनाशदौ स्तः नभोमहीजौ अर्थनाशं कुरुतः ॥ १६१ भंगमिति || पवनांवरोत्थौ भंगं विधत्तः तौ व्यत्ययान्मृत्युकृतौ भवेताम् प्रसंगेन अलं पूर्वतया पार्थिवपूर्व काश्च स्वाः भद्रंकरा भवति ॥ १६२ ॥ पंगेति ॥ पिंगदिदृक्षः पुरुषः अनीक्षितपिंगः यद्यपरं विहंगं संगतशब्दितचेष्टं पश्यति तदाऽन्यदपेक्षिततुल्यमभीष्टं फलम् ॥ १६३ ॥
॥ भाषा ॥
तो अर्थको लाभ होय. वायव्य शब्द करे पीछे तैजस शब्द बोले तो भंगसहित मृत्यु करे. और जल शब्द करै पीछे नाभस शब्द करे तो स्थानकी हानि होय और दुर्जननकरके सहित संग होय ॥ १६० ॥ मृत्युमदाविति ॥ जल और मरुतू ये दोनों शब्द मृत्यु के देनेवाले हैं. और जल, अग्नि ये दोनों भयके करनेवाले हैं. और वात आकाश ये दोनों विनाशके देनेवाले हैं. और आकाश, पृथ्वी ये दोनों अर्थको नाश करे हैं ।। १६१ ॥ भंगमिति ॥ पिंगलके पवन आकाशतें हुये शब्द भंग करें ये दोनों विपरीत होय तो मृत्युके करनेवाले होंय . और पार्थिवकूं आदिलेके जे शब्द हैं ते कमकरके कल्याणके करने चारे हैं ॥ १६२ ॥ पंगेति ॥ पिंगलकूं देखतो होय पुरुष और पिंगल न दीयो और कोई पक्षी संगकरत शब्दकरत चेष्टा करत दीखे तो आपुनकू वांछितकी तुल्य और अभीष्ट फल होय ॥ १६३ ॥
For Private And Personal Use Only