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प्रस्तावना।
१३ तेरहवें वर्गमें पिंगलिकाकै शकुन हैं। १४ चतुर्दशवे वर्गमें चार पावनके जीवनको शकुन है । १५ पंद्रहवें वर्गमें भ्रमरादिकनके शकुन हैं। १६ सोलहवें वर्गमें लालकालो कोडिनके शकुन हैं। १७ सत्रहवें वर्गमें पल्ली नाम छपकलीको शकुन है। १८ अठारहवें वर्गमें श्वाननको शकुन है । १९ उगनीसवें वर्गमें शिवा नाम शृगालीको प्रकरणहै । २० बीसवें वर्गमें शास्त्रको प्रभाव वर्णन है।
या प्रकार यामें शकुनको बहुत विषय है । शकुनको ग्रंथ अभीतक कोई भी छाप्यो नही है ।
या ग्रंथकी प्राप्ति प्रथम हमारे मित्रवर्य पंडित हरिकृष्ण व्यंकट रामजी औरंगाबादवालेने मेरे ऊपर अनुग्रह करके यह ग्रंथ मूलमात्र संवत् १७०३ ई० को लिखो हुयो पुस्तक दियो ।
तापीछे एक हमारे स्नेही आनंद सूरगछका श्रीपूज्य गुणरत्न सूरीजी उन्होंने मूल और अंतके सात वर्गकी टीका दीनी. यो पुस्तक बहुत प्राचीन है तापीछे हमने बहुतसो प्रयत्न करयो. तय एक हमारे मित्रवयं परमस्नेही व्यासजी श्रीमेवदत्तजी उन्होंने समस्त टीका कृषाकरकै राजधानी जोधपुरयूं संपादन करके भेजी ।। तापीछे हमारे मित्रवर्य नानासाहेब नारो गोविंद मेहँदले काशीजीमें रहे उनने एक पुस्तक मूलमात्र भेज्यो । तापीछे पंडितवर्य कविराज श्रीलक्ष्मीनारायणजीने काशी मूल समस्त और प्रथम ७ वर्गकी टीका भेजी ॥ तापीछे राजधानी सवाई जयपुरनिवासी पंडितवर्य श्रायुत गुणाकर जीने समस्त मूल टीका कृपा करके दीनी ॥ यह पुस्तक बडो प्राचीन मिल्यो । या रीतिसं ६ प्रतियां प्राप्त हुई । अन्यन्त प्रयाससू इन सर्व सजन पुरुषनको मैं बडो उपकार मान हूं ।।
शकुनके शास्त्र में यह ग्रंथ बहुत श्रेष्ठ है । मनुष्यन• सर्व कार्यनके जानवेमें बहुत उपयोगी है यांत हमने मूल संस्कृत टीका और हिंदुस्थानी ब्रजभाषा बनवायकरके बहुत श्रमकर शुद्ध कर छपाया है । और इसका रजिष्टरीहक सदाके लिये हमने स्वाधीन कियाहै ताकि अन्य कोई न छापसकै ऐसा यह वसंतराज शाकुन सर्व सजन पुरुपनक मान्य करनो योग्य है ।
ज्योतिर्वित् श्रीधर जटाशंकर.
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