________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काकरुते यात्राप्रकरणम् । (२९१) गोपुच्छवल्मीककृतास्पदश्चरुवन्भवेत्सर्पविलोकनाय॥स्यान्मृत्यवेंगारचितास्थिसंस्थः काकः प्रकुर्वन्कचकर्षणं च ॥ ॥९२ ॥ रुवन्पुरो हानिरुजौ करोति मृत्युं पुनर्निष्ठुरपृष्ठशब्दः॥ प्रसार्य रिक्तं वदनं य आस्ते सर्वत्र निद्यो बलिभो. जनोऽसौ।। ९३॥ वामोऽप्यसृक्पातभयं मृति वा संताडयन्नीरसदारुखंडम् ॥ चंच्चास्थि भंजन्ध्रुवमस्थिभंगं बंधं वधं जल्पति युध्यमानः॥ ९४ ॥ वामोऽतिरोगं कुरुते विशुष्के तिक्ते च वृक्षे कलिकार्यनाशौ। पक्षी विधुन्वन्विरुवन्स रूक्षं सकंटके मृत्युमुपादधाति ॥ ९५॥
॥ टीका॥
तर्हि रुधिरश्रुतिः रुधिरवार्ताश्रवणं स्यात् तथा यः काकः वल्लीवरत्रादि गृहीत्वा प्रदक्षिणं याति स सर्पभीत्यै स्यात् ॥ ९१ ॥ गोपुच्छेति ॥ गोपुच्छवल्मीककृतास्पदो रुवञ्शब्दायमानःस.सर्पविलोकनाय स्यात् तथा अंगारचितास्थिसंस्थाकच कर्षणं च प्रकुर्वन्काको मृत्यवे स्यात् ॥९२ ॥ रुवान्नति ॥ काकः पुरो रुवन्हानिरुजौ करोति निष्ठुरपृष्ठशब्दः पुनः मृत्युं करोति यश्च रिक्तं वदनं प्रसार्य आस्ते सौ बलिभोजनः सर्वत्र निंद्यः स्यात् ॥ ९३ ॥ वाम इति ।। नरिसदारुखंडं संताडयन काकः वामोऽपि अमक्पातभयं मृति वा कुरुते चंच्या अस्थि भंजन्ध्रुवं निश्चयेनास्थि भंगं वक्ति तथा युध्यमानो बंधं वचं जल्पति॥९४॥वाम इति॥वामः काकः
॥ भाषा॥ जो काफ दक्षिणमाऊं बोलकर पीठपीछे चलो जाय तो रुधिरकी वार्ता सुने. जो लता जेचडी मुखमें लेके जेमने माऊं आवे तो सर्पको भय करै ॥ ९१ ॥ गोपुच्छेति ॥ गौकी पूंछ और सर्पकी बंबे इनपै बैठके बोले सो सर्पको दर्शन होय. और अंगार चिताहाड इनपै बैठो होय और केश खैचरह्यौ होय तो मृत्यु होय ॥९२ ॥ रुवानिति ॥ जो काक अगाडी बोले तो हानि रोग करे. फिर पीठमाऊं कठोर शब्द करे तो मत्यु करे. जो खाली मोढो फैलायकर बैठो होय तो काक सदा निंदित हैं ॥ ९३ ॥ वाम इति ॥ सूखे काष्टके टूककू ताडना करै चोचतूं और वामभागमें भी होय तो रुधिरपातको भय और मृति करै. और चीनकर हाडकू उखाड पछाड करतो होय तो हाडको भंग और बन्धन कहैहैं. और युद्ध करतो होय काक तो वध करै ।। ९४ ॥ वाम इति ॥ वामभागमें शुष्कवृक्षपै बैठो
For Private And Personal Use Only