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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८६) वसंतराजशाकुने द्वादशो वर्गः।। प्रदक्षिणं यः प्रविधाय मागै वामेनकाको विनिवर्ततेऽसौ ॥ यातुः करोतीहितकार्यसिद्धिं क्षेमं च शीघ्रं पुनरागमं च ॥७३॥ वामः कलं रौत्यनुलोमयायीयो वायसोऽसौ सकलार्थसिद्धयै ॥ स्यातां क्रमादक्षिणवामशब्दौ सिद्ध्यै विरुद्धयै विपरीतभावौ ॥ ७४ ॥ पृष्ठे विरावं मधुरं विमुचअनुनजंश्चाभिमतो हिताय ॥ प्रायेण यातारमनुव्रजन्तः सर्वेऽपि काकैः सदृशा विहंगाः॥ ७९ ॥कृतारखो यः पुरतः प्रयाति पुरःस्थितो यो मुदमादधाति ॥ कण्डूयते यश्चशिरोंऽघ्रिणासौ पुंसां सदाभीष्टफलं ददाति ॥ ७६ ॥ ॥ टीका ॥ शस्तः कथितः ॥ ७२ ॥ प्रदक्षिणामिति ॥ यः काकः प्रदक्षिणं प्रविधाय वामेन विनिवर्तते असौ यातुः गच्छतः पुंसः ईहितकार्यसिद्धि क्षेमं च शीघ्र पुनः आगमनं च करोति ।। ७३ । वाम इति ॥ यो वायसः वामः कलं रौति कीहक् अनुलोमयायी सकलार्थसिद्धयै स्यात् क्वापि कलहायसिद्धयै स्यादिति पाठः।तदा कलहाय कलहनिमित्तप्रश्ने सिद्धिःस्यादित्यर्थः।क्रमादिति दक्षिणवामशब्दौ सिय विरुद्यै चस्यातां विपरीतभावौ ज्ञेयौ ।।७४॥ पृष्ठे इति ॥पृष्ठे मधुरं विराव विमुंचन अनुव्रजंश्च हितायाभिमतः प्रायेण यातारमनुव्रजन्तः सर्वे विहंगाः काकैः सदृशाःज्ञेया॥ ॥७५॥ कृतारव इति|कृतारवो यः पुरतः प्रयाति पुरः स्थितः यो मुदमादधाति हर्षितो भवति शिरः अंबिणा यः कंडूयतेऽसौ पुंसां सदाभीष्टफलं ददाति ॥७६॥ ॥भाषा॥ नहीं करै ॥ ७२ ॥ प्रदक्षिणामिति ॥ जो काक मार्गमें प्रदक्षिण होय वामकर निवर्त होय तो गमन कर्ता पुरुषकं वांछित कार्यकी सिद्धि, क्षेम, और शघ्रि पीछे आगमन करै ॥ ७३ ॥ वाम इति ॥ जो काक वामभागमें मधुर बोले अनुलोमागमन करे तो सकलार्थसिद्धि होय. जो दक्षिण वाम दोनों शब्द सिद्धिके अर्थ हैं. और जो औरसं और होयतो विपरीत फल करे ॥ ७४ ॥ पृष्ठे इति ॥ जो पीठ पीछे मधुरशब्द बोले और गमन करतो बोले तो हितके अर्थ जाननो, और गमन कर्ताके पीछे गमन करे ऐसे संपूर्ण पक्षी काककी सदृश जानने ॥ ७९ ॥ कृतारव इति ॥ जो काक बोलतो हुयो अगाडी चल्यो जाय अथवा अगाडी स्थित होय हर्ष कर और पावकर मस्तक खुजावे तो पुरुषनकू सदा अष्टिफल For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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