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( २५६) वसंतराजशाकुने-दशमो वर्गः। यःकंधरोःशिरसा समंताद्विभर्ति कार्य स समंतभद्रः॥ कृष्णेन युक्तः शिरसोरसा च भवेत्प्रभद्रः सितकंठपृष्टः ॥६॥ कंठोरसी यस्य तु खंजनस्य कृष्णे भवेतांस मतोऽनुभद्रः ।। कृष्णा भवेत्कंठगतैव रेखा यस्य त्वसौ चांबरभद्रनामा॥७॥ मध्यादमीषांशुभकार्यसिद्धयै यो यो भवेत्पूर्वतरःस मुख्यः।। आकाशभद्रो गलमात्रकृष्णः सितानः कार्यविनाशनाय ॥ ८॥ स्यायो हरिद्रारससंनिकाशो गोमूत्रनामा स तु खंजरीटः ॥ निरीक्षितः प्राग्दिवसे प्रभूतं रोगोद्गमं शंसति यावदन्दम् ॥ ९॥
॥ टीका ॥ भद्रसंज्ञौ ॥ ५ ॥ य इति ॥ यः कंधरोरः शिरसा समंतात्कार्य विभर्ति स समंतभद्रः स्यात् । शिरसोरसा व कृष्णेन युक्तः स प्रभद्रः भवेत् । कीदृक् सितकंठपृष्ठ इति सितं कंठपृष्ठं यस्य स तथा ॥ ६॥ कंठोरसीति ॥ यस्य खंजनस्य कंठोरसी कृष्णेभवतां सः अनुभद्रो मतः यस्य कंठगतैव रेखा कृष्णा भवेत् असौ अंबरभदनामा भवति ॥७॥ मध्यादिति ॥ शुभकासिद्ध्यै अमीषां मध्यायः यः पूर्वतरःभवेत्स स मुख्यः। य एतद्यतिरिक्तः आकाशभदः गलमात्रकृष्णःसिताननः स कार्यविनाशनाय स्यात्॥८॥स्याद्य इति॥यः हरिद्रारससंनिकाशः गोमूत्रनामा खंजरीटः स्यात् सःप्राक् प्रथम दिवसे निरीक्षितः यावदन्दंदुःखोद्गमंशंसति कीदृशं प्रभूतम् ९
॥भाषा॥ अनुभद्र ३ अंबरभद्र ४ खंजननके ये चार प्रकारके लक्षण कहे है ॥५॥ य इति ॥ जो कंधा वक्षःस्थल मस्तक इनमें श्यामवर्ण धारण करे वो समंतभद् संज्ञक, और जो मस्तक और वक्षःस्थल इनमें श्यामवर्ण होय पाठ और कंठपै जाके श्वेत होय वो प्रभद्र नाम खंजन है ॥ ६ ॥ कंठोरसीति ॥ जा खंजनके कंठ और वक्षःस्थलधे श्याम होय वो अनुभद्र संज्ञक जाननो. और जाके कंठमें श्यामरेखा होय वाकी अंबरभद्र संज्ञा जाननी ॥१७॥ मध्यादिति ॥ शुभकार्यकी सिद्धिक अर्थ इनके मध्यमें जो जो पूर्व होय वो यो मुख्य जाननो. जाके श्यामता कंठमें होय वो आकाशभद्र जाननो और श्वेतमुख जाको सो कार्यके विनाशके अर्थ जाननो ॥ ८ ॥ स्याद्य इति । जो हलदीके रसकी समान होय वो गोमुत्रनाम खंजरीठं जाननो वो प्रथमदिवसमें दीखै तो वर्षताई बहुत दुःखके प्रगटकंकहै.
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