SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७६) वसंतराजशाकुन-सप्तमो वर्गः। प्रदक्षिणं तोरणभूमिकायां निवृत्तिकाले प्रतिलोमगं वा ॥ तिरोभवेत्पांडविकायुगं चेत्तद्युद्धकामस्य पराजयः स्यात् ॥ ॥ २३९ ॥ समीपयुद्धे कृतवामशब्दा श्यामानुलोमा च पराजयाय ॥ अवामशब्दा यदि याति वामं भवेत्तदा भूमिभुजो जयश्रीः ॥२४० ॥ सद्यो रणे वामरवेण भंगो जयो भवेदक्षिणवासितेन ॥ कृते ध्वनौ तोरणनामधेये युग्मेस्य शब्दाच जयोऽजयो वा ॥२४१॥ वामेन गत्वा यदि याति तारा युद्धोद्यमे हंति तदा युयुत्सुम् ॥ भूत्वापि तारा प्रतिलोमगा चेत्तदा जयश्रीर्वसुधाधिपस्य ॥ २४२॥ ॥टीका ॥ ति तदा नृपस्य सशस्त्रघातो विजयो भवेत् ॥ २३८ ॥ प्रदक्षिणमिति ॥ यदि तोरणभूमिकायां प्रदक्षिणं भवेत् निवृत्तिकाले प्रतिलोमगं भवेत् । कीदृशं अंतर्हित मिति अनुलोमप्रतिलोमो भूत्वा क्वापि लीयते तदा यो कामस्य पराजयः स्यात्॥ ॥ २३९ ॥ समीपयुद्ध इति ॥ आसन्ने युद्धे कृतवामशब्द अनुलोमापि श्यामा पराजयाय स्यात् यदि अवामशब्दा वामं याति तदा भूमिभुजोजय श्रीर्भवेत्२४०॥ ॥ सद्य इति ॥ सद्योरणे वामरवेणभंगो भवेत् । दक्षिणवासितेन जयो भवेत् । तोरणनामधेये कृतध्वनौ युग्मे सति अस्य शब्दाजयोजयो वा भवेत् ॥ २४१ ॥ वामेनेति ॥ युद्धोद्यमे वामेन गत्वा यदि तारा याति तदा युयुत्सु हति । भूत्वापि ॥ भाषा॥ होय तो राजाळू शस्त्रघात सहित विजय होय ॥ २३८ ॥ प्रदक्षिणमिति ॥ तोरणकी - वीमें पोदकी प्रदक्षिणा होय और वगदती समय प्रतिलोमगा होय अनुलोम प्रतिलोम होय करके कहूं लीन होय जाय तो युद्धकी कामना जाऊ होय ताको पराजय होय ॥ २३९ ॥ ॥समीपयुद्ध इति ।। राजाके युद्धनिकटमें होनहार होय जो पोदकी शब्द बांयों करे और अनुलोमा होय तो पराजयके अर्थ जानी जो दक्षिणमांऊं शब्दकरै वामभागमें जायते पृथ्वीपति राजाकू जयश्री होय ।। २४० ॥ सद्य इति ॥ संग्राममें पोदकीके वामशब्दकरके रणभंग होय और दक्षिणा होय तो जय होय और तोरणमें शब्दकरै युग्म पोदकीको जोडा होय तो याके शब्दते जय होय वा अजय हेय ॥ २७१ ॥ वामेनेति ॥ युद्धको उद्यम होय रह्यो होय और पोदकी वाम होयकरके जो दक्षिणा आयजाय तो युद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.020879
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1828
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy