________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नरेंगिते छिक्काप्रकरणम् ।
अथ क्षुताख्यं शकुनं क्रमेण महाप्रभाव प्रतिपादयामः ॥त्रस्यंति यस्माच्छकुनाः समस्ता मृगाधिनाथादिव. वन्यस
वाः ॥ १ ॥ सर्वस्य सर्वत्र च सर्वकालं क्षुतं न कार्य कचिदेव शस्तम् ॥ जाते क्षुते तेन न किंचिदेव कुर्यात्क्षुतं प्राणहरं गवां तु ॥२॥ निपिद्धमग्रेऽक्षणि दक्षिणे च धनक्षयं दक्षिणकर्णदेशे ॥ तत्पृष्टभागे कुरुतेऽरिवृद्धिं क्षुतं कृकाणां शुभमादधाति ॥ ३ ॥ भोगाय वामश्रवणस्य पृष्टे कर्णे च वामे कथितं जयाय ॥ सर्वार्थलाभाय च वामनेत्रे जातं क्षुतं स्यात्क्रमतोऽष्टधैवम् ॥ ४॥
॥ टीका ॥ अथेति ॥ उपश्रुतिकथनानंतरं महाप्रभाव क्षुताख्य छिक्काभिधं शकुनं परिभावयामः वयं विचारयामः यस्मााक्षुताख्याच्छकुनात् समस्ता शकुनास्त्रस्यंति भयं प्रामवंति यथा मृगधिनाथावन्यसत्वा वनोद्भवाःप्राणिनस्वस्यति ॥ १॥ सर्वस्येति ॥ सर्वजनस्य सर्वत्र सर्वस्मिन्देशे सर्वकालं सर्वस्मिन्काले कचित्कार्ये क्षुतं न शस्तं क्षुते जाते सति तेन कारणेन किंचिदेव कार्य न कुर्यात्तु पुनः गवां क्षुतं गोकृतं भुतं प्राणहरं भवति ।। २ ॥ निषेधमिति ॥ अग्रे जातं क्षुतं कार्यस्य निषेधं कुरुते तथा दक्षिणे अक्षणि नेत्रे च दक्षिणकर्णदेशे धनक्षयं कुरुते तत्पृष्ठभागे दक्षिणवामकर्णपृष्ठभागे अरिवृद्धिं कुरुते कृकाणां पृष्ठभागे शुभमादधाति ॥ ३ ॥ भोगश्चेति ॥ वामश्रवणस्य पृष्ठ तख्तं भोगाय भवति । वामे च कर्णे जयाय कथितम् ।
॥भाषा ॥ अथेति ॥ उपश्रुति कहे के अनंतर महान् प्रभावरूप ठिकानाम शकुन कहहैं जा छिकाते समस्त शकुन त्रास• प्राप्त होइ हैं जैसे सिंहादिकसं और वनके जीव त्रास पाये हैं तसे ॥ १ ॥ सर्वस्येति ।। सर्वजननकं सर्व देशमें सर्वकालमें कोईकार्यमें छींक शुभ नहीं है छींकहोय तब कोई कार्य नहीं करनो योग्य है, और गमनकी छींकतो प्राणकी ह
वेवारीहै ॥ २ ॥ निषिद्धमिति ॥ अगाडी छींक होय तो कार्यकू निषेधकरै, और दक्षिण नेत्रपै भी होय तो निषेधजाननो, और दाग कर्णके पास छींक होय तो धनको क्षय करै और दक्षिणकर्णके पृष्ठभागमें छींक होय तो वैरीकी वृद्धिकर और कृकादिका जो कंठको पृष्ठभाग तामें छींक होय, तो शुभकरै ॥ ३ ॥ भोगश्चेति || वांये कर्णपै छींक होय तो जय होय वांये कर्णके पृष्ठभागमें होय तो भोग भोगें और बांये नेत्रके अगाडी होय
For Private And Personal Use Only