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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी जैन कवियों ने गीतिकाव्य को एक नयी दिशा दी है। उसे उन्होंने अध्यात्मिक साधना से जोड़ दिया है। इसलिए उसमें सघनता, गम्भीरता और सचेतनता अधिक दिखाई देती है । मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों में ये गीतात्मक तत्त्व अधिक विकसित हुए हैं। बनारसीदास, जिनप्रभसूरि, आनन्दतिलक, वृन्दावन, उदयराज, जिनराजसूरि, भूधरदास, द्यानतराय, देवीदास, भगवतीदास, विनयसागर, अनन्दघन, यशोविजय आदि कवि इस सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय हैं। आधुनिक काल में गीतिकाव्य का और भी विकास हुआ । व्यक्ति की परिस्थितियाँ बदलती गयीं और वह सांसारिकता में फँसता गया; फिर भी संस्कारों ने उसे स्वयं को खोजने के लिए विवश कर दिया। भावों के संसार ने आध्यात्मिकता की ओर खींचकर उसे सत्य पर प्रतिष्ठित होने का आमन्त्रण दिया । जैन कवियों ने इस आमन्त्रण को अपने काव्य-सृजन में उतारा। शताधिक जैन कवियों ने गीतिकाव्य लिखे । आधुनिक जैन कवि, अनेकान्त काव्य संग्रह और आधुनिक जैन कविः चेतना के स्वर नाम से प्रकाशित संकलन इसके उदाहरण हैं । युगल किशोर मुख्तार ने 'मेरी भावना' लिखकर गीतिकाव्य को नया रूप दिया। नरेन्द्र भानावत, शान्ता जैन, मिश्रीलाल जैन, जुगलकिशोर 'युगल', सरोज कुमार जैन, कल्याणकुमार 'शशि', रूपवती किरण, महेन्द्र सागर प्रचंडिया, वीरेन्द्र प्रसाद जैन आदि शताधिक कवियों ने इस क्षेत्र में नये मानदंड स्थापित किए हैं। चूँकि आधुनिक काल को हमने अपनी अध्ययन परिधि से बाहर रखा है, इसलिए हम इस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं । 14. प्रकीर्णक काव्य प्रकीर्णक काव्य में यहाँ हमने लाक्षणिक साहित्य, कोश, गजल, गुर्वावली, आत्मकथा आदि विधाओं को अन्तर्भूत किया है। इन विधाओं की ओर दृष्टिपात करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन कवि अध्यात्म और भक्ति की ओर ही आकर्षित नहीं हुए, बल्कि उन्होंने छन्द, अलंकार, आत्मकथा, इतिहास आदि से सम्बद्ध साहित्य की सर्जना में भी अपनी प्रतिभा का उपयोग किया है। लाक्षणिक साहित्य में पिंगल शिरोमणि, छन्दोविद्या, छन्द मालिका, रसमंजरी, चतुरप्रिया, अनूपरसाल, रसमोह, शृंगार, लखपति पिंगल, मालापिंगल, छन्दशतक, अलंकार आशय आदि रचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं । इसी तरह अनस्तमितव्रत सन्धि, मदनयुद्ध, अनेकार्थ नाममाला, नाममाला, आत्मप्रबोधनाममाला, अर्धकथानक, अक्षरमाला, गोराबादल की बात, रामविनोद, वैद्यकसार, वचनकोश चित्तौड़ की गजल, क्रियाकोष, रत्नपरीक्षा, शकुनपरीक्षा, रासविलास, लखपतमंजरी नाममाला, गुर्वावली, चैत्य परिपाटी आदि रचनाएँ विविध विधाओं को समेटे हुए हैं । इसी तरह कुछ हियाली संज्ञक रचनाएँ भी मिलती हैं, जो हिन्दी जैन साहित्य :: 863 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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