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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ने अनेक जैन मन्दिरों का उदारतापूर्वक निर्माण कराया। हम्पी (विजयनगर ) के जैन मन्दिरों में गणितीय मन्दिर उल्लेखनीय है, जिसमें प्राचीन शैली के चतुष्कोणिक स्तंभ हैं। श्रवणबेलगोल, मूडबिद्री, भटकल, कार्कल, बेणूर आदि के कतिपय जैन मन्दिरों में इस काल में स्थापत्य कला का सुन्दर संयोजन हुआ है। महाराष्ट्र में हेमाडपन्थी शैली का प्रचलन अधिक हुआ । यह शैली मूलतः उत्तर भारतीय शिखर शैली का परिष्कृत रूप है। इस शैली के जैन गुफा मन्दिर नासिक जिले की विगलवाडी और चंदोर नामक स्थानों पर मिलते हैं। ये गुफाएँ चतुष्कोणीय स्तंभों पर आधारित हैं | महाराष्ट्र में ही वाशिम के समीप शिरपुर में स्थित अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर भी उल्लेखनीय है, जो 13वीं शती का बना हुआ है। इसकी विन्यास - रेखा तारककार है और पत्रावली - युक्त पट्टियों का अलंकरण है। चित्रकला चित्रकला के क्षेत्र में भी जैनाचार्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनकी यह चित्रकला भित्तिचित्रों, ताड़पत्रों और कद पर देखी जा सकती है। नायाधम्म कहाओ में चित्रकार श्रेणी और चित्रशाला का उल्लेख है । उत्तरकाल में रविषेणाचार्य ने शुष्क और द्रव कोटि के चित्रों का उल्लेख किया। चित्रकर्म के रेखांकन, बेलबूटा, लकड़ी और हाथदांत की चित्रकारी सम्मिलित है । भित्ति चित्रों में प्राचीनतम भित्तिचित्र सित्तन्नवासल के जैन गुफामन्दिर में विद्यमान हैं, जिसमें सुन्दर जलाशय का चित्र पल्लववंशी महेन्द्रवर्मन प्रथम ने बनवाया । ऐलोरा की इन्द्रसभा और कैलाशनाथ मन्दिर के विविध चित्र, तिरुमलै, श्रवणबेलगोल, तिरुपरुत्ति, कुण्डरम के जैन मन्दिरों में बने समवसरण, दिव्यध्वनि, षड्लेश्या, स्वप्न, विद्याधर, गोम्मटेश्वर, भट्टारक स्वागत, नेमि राजुल आदि के मनोहारी दृश्य अंकित हैं । यह परम्परा 11वीं शती तक अधिक लोकप्रिय रही। इसके बाद ताड़पत्रीय शैली का प्रारम्भ हुआ। ताड़पत्रों पर लिखित प्राचीनतम पाण्डुलिपि षड्खण्डागम की मिलती है, जो सं. 1113 की है और मूडबिद्री में सुरक्षित है । इसमें सुपार्श्वनाथ की यक्षिणी काली, महावीर, भक्त दम्पतियुगल, श्रुतदेवी अंबिका, पूजा दृश्य, हाथी आदि का अंकन होयसल शैली में हुआ है, इसमें रेखा शैली तथा सीमित रंग योजना को अपनाया गया है । त्रिलोकसार में संदृष्टियों को चित्रोपम शैली में अंकित किया गया है। संघवी पाडा ग्रन्थभण्डार पाटन की निशीथ चूर्णि, नगीनदास भण्डार की ज्ञाताधर्म सूत्र प्रति, जैन ग्रन्थ भण्डार छाणी की ओघ निर्युक्ति, जैन सिद्धान्त भवन आरा की तिलोयपण्णत्ति और त्रिलोकसार की ताड़पत्रीय प्रतियाँ भी उल्लेखनीय हैं । पिण्डनियुक्ति पर बने हाथी, कमलदल, हंस और ज्ञातासूत्र पर बना सरस्वती का मनमोहक 80 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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