SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिया गया। इस प्रकार का परिवर्तन मदुरै और अनैमलै आदि जैन केन्द्रों का भी हुआ है। मण्डप शैली में बपना सित्तन्नवासल का गुफा मन्दिर भी उल्लेखनीय है। प्रस्तर मन्दिरों में ऐहोल का मेगुटी मन्दिर भी जिनकांची का चन्द्रप्रभा मन्दिर, तोंडई, मन्दिर, श्रवणबेलगोल का चन्द्रगुप्त वसदि मन्दिर, कम्बदहल्ली का वसदि मन्दिर भी विशेष रूप से स्मरणीय हैं, जिनमें नागर, वेसर और द्रविड़ शैली की अलंकरण की प्रचलित पद्धतियों का भरपूर उपयोग हुआ है। पल्लव, राष्ट्रकूट और चालुक्य शैलियों से यहाँ की प्रस्तर-कला प्रभावित है। दक्षिणापथ में राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद जैनधर्म की लोकप्रियता में कमी नहीं आई। कल्याणी के चालुक्य काल में लक्कुंडी, श्रवणबेलगोल, लक्ष्मणेश्वर, पट्टकल, चारण्डीमठ आदि स्थान जैनकला के केन्द्र बने। कहा जाता है, अत्तियब्बे ने 1500 जैन मन्दिर बनवाये। उत्तरकालीन चालुक्य, होयसल, यादव और काकतीय राजवंशों के शासकों ने स्थापत्य की उत्तरी और दक्षिणी शैलियों को समन्वित किया। गर्भगृह और शिखर में दक्षिण शैली तथा शेष भागों में उत्तरी शैली को नियोजित किया। विजयनगर में अवश्य दक्षिणी शैली को ही अपनाया गया है। होयसल शैली में विमान शेली और रेख नागर प्रासाद शैली का सम्मिश्रण हुआ है। श्रवणबेलगोल के अन्य जैन मन्दिर, हासन जिले का अग्रलिखित मन्दिर, तुमकुर जिले के नित्तूर की शांतीश्वर वसदि, मैसूर जिले के नित्तूर की शांतीश्वर वसदि, मैसूर जिले के होलहोल्लू की पार्श्वनाथ वसदि, बैंगलोर जिले के शांतिमत्ते की वर्धमान वसदि आदि जैन मन्दिर गंग-शैली के उदाहरण हैं। देवगिरि के यादवों के शासनकाल में निर्मित मनमाड के समीवर्ती अंजनेरी गुफा मन्दिर भी उल्लेखनीय हैं। आन्ध्र प्रदेश में अनेक जैन कला केन्द्र बने, जैसे पोट्टला-चेरुब (पाटनचेरु), वर्धमानपुर (वड्डमनी) प्रगतुर, रायदुर्गम, चिप्पगिरि, हनुमकोण्डा, पेड्डतुम्बम, पुडुर, अडौनी, नयनकली, कम्बदुर, अमरपुरम् कोल्लिपाक, मुनुगोडु, पेनुगोडा, नेमिम, भोगपुरम् आदि। इन स्थानों पर प्राप्त स्थापत्य कला से अनेक शैलियों का पता चलता है। सोपान मार्ग और तलपीठ सहित निर्माण की कदम्ब नागर शैली और शिखर चतुष्कोणी पर कल्याणी चालुक्यों की शुकनासा शैली विशेष उल्लेखनीय है। ___तमिलनाडु स्मारकों में तिरुपरुत्ति कुण्डरम उल्लेखनीय है, जहाँ के जैन मन्दिरों में पल्लवकाल से विजयनगर काल तक की स्थापत्य शैलियाँ उत्कीर्ण हुई हैं। चन्द्रप्रभ मन्दिर, वर्धमान मन्दिर तिरुमलै (उत्तर अर्काट जिला) के मन्दिरों की निर्माण कला में भी विकास की रूपरेखा जगी हुई है। दक्षिणापथ में भी मुस्लिम आक्रमणों ने जैन स्थापत्य कला को भारी नुकसान पहुँचाया। हजारों मन्दिर वीर शैवों और मुसलमानों ने नष्ट-भ्रष्ट किये, फिर भी वह कला समूचे रूप में नष्ट नहीं की जा सकी। विजयनगर शासकों, सामंतों और राजदरबारियों श्रमण जैन संस्कृति और पुरातत्त्व :: 79 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy